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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मुझे उड़ीसाके अपने हालके दौरेसे मालूम हुआ कि आम जनता केवल अपने भोजनकी चिन्ता करती है, लेकिन उसे स्वराज्यके लाभोंके बारेमें भी सोचना चाहिए। यदि अंग्रेज इन्हें मुफ्त चावल दें तो ये लोग हमें कोई मान्यता ही न दें। उन्होंने वकीलोंसे स्पष्ट कहा कि जबतक सरकार प्रायश्चित्त नहीं करती और जबतक स्वराज्य नहीं मिल जाता तबतक आप लोगोंको वकालत नहीं करनी चाहिए। मेरे विचारसे जिन घटना- ओंके कारण पंजाबके निर्दोष लोग अंडमान भेजे गये ...[१]

मेरे लेखे स्वराज्य एक धागेसे बँधा हुआ है — चरखेके धागेसे ! उन्होंने जोर देकर कहा कि यदि हम एक सालके अन्दर ब्रिटिश मालका प्रभावकारी ढंगसे बहिष्कार नहीं कर सके तो फिर उसका अवसर निकल जायेगा। उन्होंने ईस्ट इंडिया कम्पनीके बिछाये हुए जालका उल्लेख किया और जोरदार शब्दोंमें अपील की कि हमें अपने- आपको पवित्र बनाना है और इसलिए इस सहानुभूतिहीन शैतानी सरकारसे मुक्ति पानेके लिए हमें शैतानका रास्ता नहीं अपनाना चाहिए। मैं दावा करता हूँ कि मैं एक व्यावहारिक आदर्शवादी हूँ। मुझे खुशी है कि भारत मद्य-पानकी बुराईके विरुद्ध शक्तिशाली आन्दोलन चला रहा है और इस मामले में वह कांग्रेससे भी आगे बढ गया है। मेरा खयाल है कि आत्मशुद्धिके लिए हमें किसी विश्वविद्यालयकी शिक्षाको जरूरत नहीं है। उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम एकताका उल्लेख करते हुए बताया कि वह तो अब प्राप्त ही हो गई है। उन्होंने आग्रह किया कि अब दलित वर्गोंको ऊपर उठाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि स्वराज्य पानेके लिए पैसा जरूरी है। अतः, तिलक स्वराज्य कोषको बढ़ाना चाहिए और चूंकि उससे देशको जीवन मिलता है, इसलिए उसका प्रवाह कभी रुकना नहीं चाहिए।

[ अंग्रेजीसे ]

हिन्दू, १-४-१९२१

२५०. टिप्पणियाँ
दमन और उससे शिक्षा

नागपुरमें मुझे डाक्टर चोलकरके उस भाषणको[२] बारीकीसे देखनेका अवसर मिला जिसके आधारपर उनके विरुद्ध मुकदमा चलाया जा रहा है। खुफिया विभागके आदमीने उस भाषणकी जो रिपोर्ट दी है, यदि उसीको ले लें तो वह भी बिलकुल आपत्ति- जनक नहीं है। लॉर्ड चैम्सफोर्डके शब्दोंका उपयोग करें तो वह एकदम 'अलंकार- विहीन' तर्क-प्रधान भाषण है। अलबत्ता, उसमें गणतान्त्रिक शासन-पद्धतिपर विचार अवश्य किया गया है। यदि यही उनका मुख्य अपराध है तब तो लगभग प्रत्येक

  1. १. मूल स्पष्ट नहीं है।
  2. २. देखिए “भाषण : नागपुरमें" , १८-३-१९२१ ।