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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


भारतीय होने के नाते ही की है। और मेरे लिए यह काफी था कि मैं अपनी अपील उसी मुद्देतक सीमित रखूँ, जो सम्बन्धित जन-समुदायकी समझमें सरलतापूर्वक आ सकता है, और उनकी पहुँचके भीतर है। मुख्य तर्क तो सबके लिए सदैव एक ही रहेगा । यदि मैंने वह अपील उनकी देशभक्तिकी भावनाके बजाय उनकी व्यापकतर मानवताकी भावनासे की होती तो सिखोंको लिखे मेरे उस पत्रका जोर कुछ कम हो जाता। जो सिख किसी गैर-सिखको अपराध करनेपर दण्ड किन्तु सिखको अपराधी होनेपर क्षमा कर देना चाहेगा, उससे यही कहा जाना चाहिए कि इस घटना-जैसी घटनाओंमें उसके लिए सिख और भारतीयका अर्थ एक ही होना चाहिए। अगर किसी अंग्रेजके लिए एक भारतीय से अपील की जाये तो वह उसकी देशभक्तिकी भावनाके प्रति नहीं बल्कि उसकी मानवीय भावनाके प्रति की जायेगी ।

किन्तु मैं मान सकता हूँ कि आज लोगोंकी जैसी भावना है, उसे देखते हुए कोई अंग्रेज मेरे पत्रका मंशा गलत भी समझ सकता है। मेरे लिए तो मानवीयता और देशभक्ति एक ही चीज है। मैं देशभक्त हूँ, क्योंकि मुझमें मानवीयता है और दया है। मेरी देशभक्ति भारतके लिए ही नहीं है। मैं भारतका भला करनेके लिए इंग्लैंड अथवा जर्मनीको नुकसान नहीं पहुँचाऊँगा। मेरी जीवन-योजनामें साम्राज्य- वादके लिए कोई स्थान नहीं है। जो नियम किसी कुलपतिपर लागू होता है, वही देशभक्तपर भी लागू होता है, और यदि किसी देशभक्तमें मानवीयता कम है तो सम- झना चाहिए कि उसकी देशभक्ति में भी उस हदतक कमी है। निजी और राजनैतिक विधान में कोई विरोध नहीं है। उदाहरणके लिए, कोई असहयोगी समान परिस्थितियों में अपने पिता अथवा भाईके प्रति ठीक उसी प्रकारका बरताव करेगा, जैसा वह आज सरकारके प्रति कर रहा है।

जनरल डायरके बारेमें क्या कहना है ?

वही मित्र पूछते हैं कि यदि मेरा यह कहना सच है तो फिर जलियाँवाला बाग और उस गलीको क्यों बार-बार याद किया जाता है, जिसमें भारतीयोंको रेंगनेके लिए मजबूर किया गया था।[१] उत्तर सीधा है। क्षमा करना भूल जाना नहीं है। यदि आप किसी शत्रुकी शत्रुताको भूलकर उसे मित्र मानकर प्यार करें तो उसमें कोई खूबी नहीं है। खूबी तो इसमें है कि आप भली-भाँति यह जानते हुए भी कि वह आपका मित्र नहीं है, उसे प्यार करें। इस्लामके वीर पुरुष हजरत अलीने अपने एक प्रतिद्वन्द्वीपर तबतक प्रतिप्रहार नहीं किया जबतक उन्हें उस प्रतिद्वन्द्वी द्वारा किये गये अपने अपमानकी स्मृति बनी रही, हालाँकि वे अपने उस प्रतिद्वंदीके मुकाबले बहुत ज्यादा बलवान और युद्ध-कुशल थे । भारत यह नहीं चाहता कि सर माइकेल ओ'डायर तथा जनरल डायर सरीखे अपराधियोंको दण्ड दिया जाये; वह चाहता है कि उन अधिकारियोंको बर्खास्त कर दिया जाये, जिन्होंने अपने आपको अपने दायित्वके निर्वाहके

अयोग्य सिद्ध कर दिया है। और जबतक वे भारतके राज-कोषसे कोई पेन्शन पाते

 
  1. १. देखिए खण्ड १७, पृष्ठ १९८-२०२ ।