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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कि आज जनगणनाके मामलेमें है। हममें से हजारों लोगोंको आज बेजोड़ अवसर मिला है कि वर्तमान शासन-प्रणालीके प्रति अपनी अरुचि प्रदर्शित करें। किन्तु इस समय संयमका अभ्यास हमें भविष्यकी सविनय अवज्ञाके लिए तैयार करेगा। अतः हम जनगणनाका यह कार्य पूरा करनेमें सरकारकी मदद करें——इसलिए नहीं कि हम अवज्ञाके परिणामसे डरते हैं, बल्कि इसलिए कि स्वभाव तथा प्रशिक्षण दोनोंकी दृष्टिसे हम कानूनको पालन करनेवाले हैं, और हमें अभी भी नैतिकता-निरपेक्ष नियमोंकी अवज्ञा करनेकी जरूरत नहीं। यह अवज्ञा हमें न विरोध प्रदर्शनके रूपमें करनी है, और न उस सरकारकी सत्ताको नष्ट करनेके लिए, जिसपर से हमारा विश्वास उठ गया है। अहिंसात्मक असहयोगमें उस अन्तिम उपायका सहारा लेनेकी भी हमें छूट है, किन्तु हम समझते हैं कि उसकी कार्यान्वितिके लिए अनुकूल वातावरण अभी तैयार नहीं हो पाया है। जबतक नरम उपाय हमारे सामने हैं, हमें सख्त उपायोंका सहारा नहीं लेना चाहिए। अतः मैं आशा करता हूँ कि वे सब लोग, जिन्हें मौजूदा कानूनके अनुसार जनगणना कार्यमें मदद करनेके लिए आमन्त्रित किया जाये, अधिकारियोंकी आवश्यक सहायता करेंगे।

मुँह बन्द करनेवाली कुछ और आज्ञाएँ

उपर्युक्त टिप्पणियाँ लिख लेनेके बाद मैंने पंडित रामभज दत्त चौधरी[१] तथा सैफुद्दीन किचलूपर तामील की गई आज्ञाओंका पाठ देखा है। ये आज्ञाएँ १९१५ के भारत रक्षा नियमोंके नियम ३ (ग) के अधीन जारी की गई हैं, और इस प्रकार हैं

चूँकि स्थानीय सरकारकी रायमें यह विश्वास करनेका युक्तिसंगत आधार है कि जिस व्यक्तिका नाम दिया गया है, उसने ऐसा आचरण किया है जो सार्वजनिक सुरक्षाके प्रतिकूल पड़ता है; इसलिए परमश्रेष्ठ गवर्नर महोदय इस आज्ञापत्र द्वारा यह आदेश देते हैं कि उक्त व्यक्ति अगला आदेश पाने तक किसी भी सार्वजनिक सभामें शामिल न होगा और न उसमें कोई भाषण देगा।

मैं इस आज्ञाके पानेपर दोनों व्यक्तियोंको बधाई देता हूँ। मैं आशा करता हूँ कि सरकार देखेगी कि आन्दोलन फिर भी पहलेकी ही तरह मजेमें चल रहा है। मैं पंडितजी और डाक्टर साहबसे कह चुका हूँ कि अब उन्हें जो भी विचार प्रकाशित करने योग्य लगें उन सबको लिखकर अखबारों तथा उन सभाओंमें भेजें, जिनमें वे हाजिर होना चाहते हों; और उनकी वाणीपर रोक लगानेसे उन्हें अनिवार्यतः जितना अवकाश मिल गया है, उसका कुछ भाग कताईमें लगायें। अन्य वक्ताओंको भी मेरी यही सलाह है कि सरकारकी सुविधाका खयाल रखते हुए वे जितना हो सके, कम बोलें तथा अपना ध्यान चुपचाप संगठन-कार्यकी ओर लगायें। मैं जानता हूँ कि ये सब सज्जन इन मनमानी आज्ञाओंकी उपेक्षा करके हँसी-खुशी जेल जाना चाहेंगे। किन्तु ऐसा समय अभी नहीं आया है।

  1. एक स्थानीय नेता और कवि, जिन्होंने अपनी पत्नी सरलादेवी चौधरानीके साथ पंजाबके सार्वजनिक मामलों में प्रमुख हिस्सा लिया।