पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 19.pdf/४४३

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४१५
भाषण : अम्बालामें

यूनियन जैकको सलामी देनेपर विवश किया गया। यदि आतंकके ये बादल फिरसे छा गये तो मैं आशा करता हूँ कि अब एक भी पंजाबी ऐसा न होगा जो रेंगने या जमीनपर नाक रगड़नेके लिए तैयार होगा; एक भी बच्चा ऐसा न होगा जो अपनी इच्छाके विरुद्ध यूनियन जैकको सलामी देगा। मुझे आशा है कि जिन बातोंका मैंने उल्लेख किया है उनमें से एकको भी विवश होकर करनेके बजाय आप गोलीसे उड़ा दिया जाना पसन्द करेंगे।

भारत तथा इस्लामके सम्मानकी रक्षाके लिए हमने जो असहयोग आन्दोलन शुरू किया है उसके लिए पंजाबने क्या किया है? मुझे प्रश्नकर्त्ताओंको खेदके साथ यह बताना होगा कि पंजाबके वकीलोंने राष्ट्रकी पुकारपर कुछ विशेष ध्यान नहीं दिया। सरकार द्वारा चलाये गये कालेजोंको छोड़नेवाले विद्यार्थियोंकी संख्या भी ज्यादा नहीं है, और बहुत कम लोगोंने अपनी उपाधियोंका त्याग किया है। मुझे आशा है कि जल्दी ही पंजाब इन कमियोंको दूर कर देगा। लेकिन जहाँतक आर्थिक सहायताका सवाल है, मैं यह प्रमाणित कर सकता हूँ कि पाँच नदियोंके इस प्रदेशने स्वराज्य कोषकी व्यवस्था खासी कुशलताके साथ की है। हर स्थानपर मैंने लोगोंको तुरन्त पैसा देनेके लिए तत्पर पाया। परन्तु आर्थिक सहायता चाहे वह कम हो या ज्यादा इस आन्दोलनके साथ आपके सम्बन्धकी एक निशानी है। स्वराज्य कोषके मामलेमें पंजाब सबसे आगे है यह सोचकर आप सन्तोष कर लें या अपने काममें ढिलाई करें ऐसा मैं नहीं चाहता। आपको इसके बारेमें लाला लाजपतरायकी सारी चिता दूर कर देनी चाहिए। स्वदेशीके मामलेमें भी पंजाब सबसे आगे बढ़ गया है। चरखा जितना पंजाबमें लोकप्रिय है उतना और कहीं नहीं। सम्पन्नसे-सम्पन्न कुलोंकी स्त्रियोंको नियमपूर्वक प्रतिदिन चरखा कातते देखकर मेरा मन उत्साहसे भर आता है। मैं पंजाबकी स्त्रियोंको उनके परिश्रम और देशभक्तिके लिए बधाई देता हूँ। पंजाबी स्त्रियोंकी श्रद्धा, भक्ति और सादगी देखकर मेरे मनमें बहुत आशा जागती है। अपने हिस्सेका धन देनेमें भी स्त्रियाँ पुरुषोंसे पीछे नहीं हैं। लेकिन जबतक पंजाबमें अपनी जरूरत-भरका सूत और कपड़ा नहीं बनने लगता और सब पंजाबी खद्दर नहीं पहनने लगते तबतक मुझे सन्तोष नहीं होगा। इस बातमें पंजाब चाहे तो समस्त भारतका मार्गदर्शक बन सकता है।

अभी तो पंजाबके लोगोंके मनमें अपने गुरुओं और स्वामी दयानन्दकी स्मृति ताजी है। उनके मनमें श्रद्धा-भक्ति भी है। आर्य-समाजियों और सिखोंके पास बढ़िया संगठन है। और उनके पास धन-दौलत भी है। धर्मकी शुद्धताका आग्रह रखनेवाले, अनुशासनबद्ध लोगोंके ये समाज छोटे तो हैं, किन्तु हैं सुगठित। यदि वे अपने इस निष्ठापूर्ण उत्साहको देशके काममें लगा सकें तो इसी वर्ष स्वराज्य प्राप्त करनेके इस आन्दोलनमें उनका योग कुछ कम नहीं माना जायेगा। आप आसानीसे अपनी सभी शिक्षा-संस्थाओंका राष्ट्रीयकरण कर सकते हैं। और वकील भी बिना किसी कठिनाईके