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बिहारमें दमन


यहाँ भी हम देखते हैं कि जिस बातके लिए ब्रह्मचारीका मुँह बन्द किया गया है, वही बात हजारों लोगोंने कही है। ब्रह्मचारीने सरकारपर जो आरोप लगाये हैं, वे आरोप उसपर कांग्रेसके विशेष प्रस्तावकी[१] प्रस्तावनामें पहले ही लगाये जा चुके हैं। मैंने स्वयं इस सरकारको "धोखेबाज, वादा-खिलाफी करनेवाली और अत्याचारी!" बताकर इसकी भर्त्सना की है। लेकिन यह खोजनेका काम शायद सीतामढ़ीके मजिस्ट्रेट के लिए छोड़ दिया गया था कि इन शब्दोंमें सरकारकी भर्त्सना करना जुर्म है।

अब सवाल यह उठता है कि इस हालतमें लॉर्ड सिन्हा इस्तीफा देनेके[२] अलावा और क्या कर सकते हैं। मजिस्ट्रेटोंके आदेशोंमें भी किसी तरहकी दस्तन्दाजी नहीं कर सकते। अगर करेंगे तो मजिस्ट्रेट असहयोग करने लगेंगे, काम बन्द कर देंगे, और इस तरह वे उनकी स्थिति असह्य बना देंगे, शासनका चलना मुश्किल कर देंगे। इसलिए इस आशासे कि शायद कभी न कभी किसी तरह गवर्नरके रूपमें वे देशकी सेवा कर सकेंगे, वे अपने मनको समझा लेते हैं कि किसी अंग्रेज गवर्नरके लिए इस जगहको खाली करनेसे तो इसपर बने रहना ही बेहतर है। अभी उनका शासन शुरू ही हुआ है। जनता किसी दिन देखेगी कि उनके शासन-कालमें नौकरशाहीने अपनी शक्तिकी बुनियाद इतनी मजबूत कर ली है, जितनी वह किसी अंग्रेज गवर्नरके समयमें नहीं कर सकती थी। और इसके दो कारण हैं: एक ओर तो नौकरशाही उसपर होनेवाले हर नियन्त्रणके प्रति उससे अधिक असन्तोष दिखायेगी जितना कि वह किसी अंग्रेज गवर्नरके शासनमें दिखाती, और दूसरी ओर जनता अन्यायोंको कुछ अधिक प्रसन्नतासे स्वीकार कर लेगी, क्योंकि वह स्वभावतः उनके शासनको सफल बनाना चाहेगी। और इस तरह गवर्नरके पदके लिए जिस सबसे योग्य और दृढ़ भारतीयको चुना जा सकता था, वह भी गवर्नरके रूपमें असफल सिद्ध होगा——इसलिए नहीं कि उसमें उद्यम या योग्यता की कमी है, बल्कि इसलिए कि जिस प्रणालीके अनुसार परमश्रेष्ठसे शासन चलानेकी अपेक्षा की जाती है, वह प्रणाली ही मूलतः दूषित है। इसलिए, जिस व्यक्तिके लिए मेरे मनमें इतना अधिक सम्मान है, उसके शासनकी आलोचना करते हुए मुझे कोई खुशी नहीं हो रही है। लेकिन बात यह है कि गोखले-जैसे किसी महान् पुरुषको भी यह तन्त्र इसकी मौजूदा भावनाके अनुसार चलाने को कहा जाता तो वह भी विफल हो जाता।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २-३-१९२१
 
  1. कलकत्तामें आयोजित सितम्बर १९२० की विशेष कांग्रेस द्वारा स्वीकृत असहयोगका प्रस्ताव।
  2. लॉर्ड सिन्हाने २१ नवम्बर, १९२१ को इस्तीफा दे दिया।