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१९२. टिप्पणियाँ

वकील और विद्यार्थी किस प्रकार सहायता करें?

जहाँ कहीं भी मैं गया हूँ मुझसे यह पूछा गया है कि जो विद्यार्थी और वकील कांग्रेसके उनसे सम्बन्धित प्रस्तावका पालन नहीं कर सकते वे इस आन्दोलनमें किसी दूसरी प्रकारकी सहायता कर सकते हैं या नहीं। यह एक विचित्र-सा सवाल है। क्योंकि इसमें यह ग्रहीत है कि जो विद्यार्थी या वकील असहयोग नहीं कर सकते वे [कदाचित्] और कोई मदद नहीं कर सकते। निःसन्देह ऐसे सैकड़ों विद्यार्थी और बीसियों ऐसे वकील होंगे जो केवल दुर्बलतावश ही अपनी पढ़ाई या वकालत नहीं छोड़ सकते। पर यदि कोई वकील वकालत नहीं छोड़ सकता तो भी वह आर्थिक सहायता तो कर ही सकता है। वह अपना खाली समय सार्वजनिक सेवाकार्यमें लगा सकता है। वह अपने धन्धेमें ईमानदारी और खरे व्यवहारका प्रचलन कर सकता है। अर्थात् वह अपने मुवक्किलोंको सिर्फ रुपया ऐंठनेका साधन न माने और न वह दलालोंके साथ किसी प्रकारका सम्बन्ध रखे। मुकदमोंका फैसला पंचोंसे करानेमें भी वह सहायता दे सकता है। और कुछ नहीं तो वह स्वयं प्रतिदिन एकाध घण्टा कताई करके अपने पारिवारिक जीवनमें सादगी लानेका प्रयत्न कर सकता है। वह अपने परिवारके सदस्योंको नियमपूर्वक प्रतिदिन कुछ समय कताई करनेके लिए भी प्रोत्साहित कर सकता है। वह चाहे तो अपने और अपने परिवारके लिए खादीका उपयोग कर सकता है। ये कुछ ऐसी बातें हैं जिनका पालन कोई भी वकील कर सकता है। अगर कोई व्यक्ति असहयोग कार्यक्रमके किसी विशेष भागका पालन नहीं कर सकता या नहीं करना चाहता तो उसे दूसरी बातोंका पालन करनेसे कतराना नहीं चाहिए। वकालत करनेवाले वकीलको सिर्फ यह एक बात नहीं करनी चाहिए——आगे बढ़कर जनताका नेतृत्व। उसे चुपचाप काम करके ही सन्तोष करना है। वकालत करनेवाले इन वकीलोंके लिए जो कुछ मैंने कहा है वही बात उन विद्यार्थियोंपर भी लागू है जो पढ़ाई नहीं छोड़ सकते या छोड़ना नहीं चाहते। हमारे अधिकांश स्वयंसेवक विद्यार्थी हैं। स्वयंसेवकके रूपमें कार्य करना एक विशिष्ट अधिकार है। जो विद्यार्थी सरकारी स्कूल नहीं छोड़ पाया उसे राष्ट्र यह अधिकार नहीं दे सकता और उसे भी राष्ट्रके आकांक्षाहीन सेवक बने रहनेमें सन्तोष करना होगा। यद्यपि हम स्कूलों और कालेजोंका पूर्ण बहिष्कार नहीं कर सकते तो भी हमें उनकी प्रतिष्ठाको तो कम करना ही है। उनकी अब पहलेकी तरह प्रतिष्ठा नहीं रही है और रही-सही प्रतिष्ठा भी दिन-प्रतिदिन कम होती जा रही है। जबतक इन संस्थाओंका राष्ट्रीयकरण नहीं हो जाता और वे राष्ट्रकी आवश्यकतानुसार अपनेको ढाल नहीं पातीं तबतक उनकी प्रतिष्ठाकी पुनःस्थापनाके लिए हम कुछ नहीं करेंगे।

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