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भाषण : रोहतकके ग्रामीण सम्मेलनमें

जारी है। यदि विघटनका काम जल्दी पूरा करनेके लिए हिंसक तरीके अपनाये गये तो इस प्रक्रियाको गतिमें बाधा पड़ेगी। हमारी यह सरकार हिंसाकी शक्तियोंको रोकनेके लिए पूरी तरह सज्जित है। इसके विपरीत, अहिंसाकी बलवती-शक्तियोंको रोकनेके लिए उसके पास कुछ नहीं है। भला मुट्ठीभर अंग्रेज स्वेच्छिक आत्म-त्यागके लिए तत्पर तीस करोड़ मनुष्योंकी स्वेच्छाप्रेरित मताभिव्यक्तिका कैसे सामना कर सकते हैं?

अतः मैं आशा करता हूँ कि असहयोगी कार्यकर्त्ता सामाजिक बहिष्कारके फंदोंसे सावधान रहेंगे। किन्तु निश्चय ही सामाजिक बहिष्कार न करनेका मतलब सामाजिक मेल-जोल रखना नहीं है। जो मनुष्य महत्वपूर्ण मामलोंमें शक्तिशाली और सुस्पष्ट जनमतकी उपेक्षा करता है, वह सामाजिक सुविधाओं तथा अधिकारोंका पात्र नहीं है। हमें उसके शादी-विवाह, भोज आदि जैसे सामाजिक उत्सवोंमें भाग नहीं लेना चाहिए और न उससे उपहार लेना चाहिए। हाँ, सामाजिक सेवासे उसे वंचित नहीं करना चाहिए। सामाजिक सेवा एक कर्त्तव्य है। भोजमें शामिल होना तथा ऐसी अन्य बातें विशेष अधिकारकी बातें हैं, जिनका लाभ देना या न देना हमारी इच्छापर निर्भर है। मैंने बहिष्कारकी जो मर्यादा बाँधी है उस रूपमें भी इसका प्रयोग विरल और सुनिश्चित अवसरोंपर ही करनेमें बुद्धिमानी है; भले ही इसमें मेल-जोल रखनेकी गलतीकी गुंजाइश हो। प्रत्येक मामलेमें बहिष्कारके अस्त्रका उपयोग करनेवाला व्यक्ति उसका उपयोग अपनी जोखिमपर ही करेगा। अभीतक तो उसका उपयोग किसी भी रूपमें कर्त्तव्य नहीं है और यदि उससे आन्दोलनको आघात पहुँचनेका खतरा हो, तो उसके उपयोगका किसीको भी अधिकार नहीं है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १६-२-१९२१
 

१८३. भाषण : रोहतकके ग्रामीण सम्मेलनमें [१]

१६ फरवरी, १९२१

हमारा उद्देश्य स्वराज्य और खिलाफतके प्रश्नपर राहत प्राप्त करना है। यदि सरकार फिर मार्शल लॉ जारी कर दे तो अब लोग पेटके बल रेंगना स्वीकार नहीं करेंगे। अब हममें इतनी शक्ति आ गई है कि हम पेटके बल रेंगना तथा यूनियन जैकके सामने झुकनेसे इनकार कर देंगे। अपनी इच्छासे ३५ वर्षतक मैंने सरकारका शासन स्वीकार किया है पर अब बल-प्रयोग करके भी मुझसे ऐसा नहीं कराया जा सकता। हमें सत्कार्य करके ईश्वरके सिपाही बनना है। हम इस सरकारको सुधार डालना चाहते हैं और यदि यह नहीं होता तो उसे हम खत्म कर देंगे। मेरा आपसे यही अनुरोध है कि किसी औरकी सेवा करनेके बदले आप ईश्वरके सेवक बनें। मेरी सलाह

  1. पंजाबके हरियाना प्रदेशमें; गांधीजीने वैश्य हाई स्कूलकी नींव रखी और जाट स्कूल देखने गये। इस स्कूलको उन्हीं दिनों राष्ट्रीय ढंगसे चलाया जाने लगा था।