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१६६. सबसे बड़ी बात

आशा करनी चाहिए कि असहयोग आन्दोलनकारी इस बातको स्पष्ट समझ लेंगे कि राष्ट्रकी प्रगतिमें हिंसा जितनी बाधक है उतनी अन्य कोई चीज नहीं। आयरलैंडका हिंसा द्वारा स्वाधीनता प्राप्त कर सकना सम्भव हो सकता है। टर्कीके लिए हिंसाके द्वारा एक खास समयमें अपने खोये हुए प्रदेश वापिस ले सकना मुमकिन हो सकता है। किन्तु भारत सौ सालतक इस उपायसे स्वतन्त्रता प्राप्त नहीं कर सकता, क्योंकि यहाँके लोगोंकी रचना ही अन्य राष्ट्रोंके लोगोंसे भिन्न तरीकेपर हुई है। उनका लालन-पालन कष्टसनकी परम्पराओंके बीच हुआ है। सही हुआ हो या गलत, अच्छा हुआ हो या बुरा, लेकिन सचाई यही है कि भारतमें इस्लामका विकास भी शान्तिपूर्ण ढंगसे हुआ है। मैं कहूँगा कि अगर इस्लामके अनुयायी भारतमें इसके सम्मानकी रक्षा करना चाहते हैं तो शान्त और सौम्य ढंगसे, जागरूकता और साहसके साथ चुपचाप कष्ट- सहन करके ही वे वैसा कर सकते हैं। मैं इस विलक्षण धर्मका जितना अधिक अध्ययन करता हूँ, मेरा यह विश्वास उतना ही अधिक पुष्ट होता जाता है कि इस्लामके ऐश्वर्यका आधार तलवार नहीं, बल्कि इसके प्रारम्भिक खलीफाओंकी कष्टसनकी प्रवृत्ति और उदारता है। इस्लामका पतन तब हुआ जब उसके अनुयायी भ्रमवश बुरेको अच्छा मानकर मनुष्य जातिके सम्मुख तलवार खींचकर खड़े हो गये और इस्लाम-धर्मके संस्थापक तथा उनके शिष्योंकी कठोर साधना, नम्रता और धार्मिकताके आठ गुणोंको भूल गये। लेकिन मैं इस समय यह सिद्ध नहीं करना चाहता कि सब धर्मोके समान इस्लामका आधार भी हिंसा नहीं, कष्टसहन है, जीवन लेना नहीं, बल्कि जीवन देना है।

मैं अभी तो यह बताना चाहता हूँ कि अगर असहयोग आन्दोलनकारियोंको एक वर्षके भीतर स्वराज्य प्राप्त करना है तो उन्हें अपनी प्रतिज्ञाकी भावना और शब्दोंके प्रति सच्चा रहना चाहिए। भले ही वे असहयोगको भूल जायें, लेकिन उन्हें अहिंसाको नहीं भूलना है। असलमें तो असहयोग अहिंसा है। जब हम किसी हिंसक सरकारसे सहयोग करते हैं, तब हम भी हिंसक हो जाते हैं। ऐसी सरकारका अन्तिम आधार न्याय और औचित्य नहीं, पशु-बल है। वह अन्ततः जिस चीजका आग्रह रखकर चलती है वह चीज तर्क-बुद्धि और हृदयकी आवाज नहीं, बल्कि तलवारका जोर है। हम हिंसात्मक शक्तिकी इस प्रणालीसे ऊब गये हैं और इसके विरुद्ध उठ खड़े हुए हैं। अब हम ऐसा न करें कि हिंसक बनकर, अपनी आस्था और मान्यताको आप ही झुठला दें। अंग्रेज संख्यामें कम हैं, लेकिन वे हिंसाके लिए संगठित हैं। हम संख्यामें अधिक होते हुए भी सुदीर्घ कालतक हिंसाके लिए संगठित नहीं हो सकते। हिंसा हमारे लिए निराशाका धर्म है।

किसी धर्म-भीरु अंग्रेज महिलाने एक करुणाजनक पत्र लिखा है। उसमें वह डायर-शाहीका बचाव करते हुए कहती है कि जनरल डायरने जलियाँवालामें जो-कुछ किया