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टिप्पणियाँ

हाँ, यह जरूर है कि मैं खद्दर पहननेवालेको अनुचित श्रेय नहीं दूँगा। और इसलिए मैं यह माननेको कभी तैयार नहीं होऊँगा कि खाली खद्दर पहन लेनेसे ही वह नेकचलन या अच्छे गुणोंवाला हो गया है। इसका यह मतलब हुआ कि सरकारसे सहयोग करनेवाले और सरकारी नौकर भी असहयोगी समझे जानेका खतरा उठाये बिना खद्दर पहन सकते हैं। भोले लोगोंको ठगनेके लिए कई धूर्त मन्दिरमें जाते हैं, पर सच्चे भक्त फिर भी मन्दिर जाना नहीं छोड़ते। ठीक इसी तरह हमें भी खद्दरसे मुँह नहीं मोड़ना चाहिए। मैं एक ऐसे संसद सदस्यको जानता हूँ जो मद्य-निषेधके बहुत कट्टर समर्थक बनते थे, और इसकी ओटमें उन्होंने अपने बहुत-से ऐबोंको छिपा रखा था। कुछ ही दिन हुए एक बहुत ही धृष्ट और मक्कार सटोरिया मद्य-निषेधका समर्थक बनकर भले आदमियोंकी सोहबतमें प्रवेश पा गया था। किसी कविने ठीक ही कहा है : "पाखण्ड व्याजान्तरसे सदाचारको प्रशस्ति ही है।"

क्षमा-याचना

श्री अडवानीके नामसे छपे पूर्व आफ्रिकाके खरीतेसे[१] सम्बन्धित लेखके लिए मैं पाठकोंसे माफी माँगता हूँ। उस लेखमें जो दृष्टिकोण जाहिर किया गया है, वह उसमें दिये गये तथ्योंसे मेल नहीं खाता। भाषा भी गैरजरूरी तौरपर तीखी हो गई है। मैं मौजूदा शासन-प्रणालीकी तीव्र भर्त्सना करता हूँ, मगर जान-बूझकर गैरवाजिब निन्दाका गुनाह कभी नहीं करूँगा। यह खरीता पूर्व आफ्रिकाके भारतीय प्रवासियोंके साथ न्याय करनेकी एक सच्ची कोशिश है। यह सच है कि यह खरीता भारतमें हुई जागृतिके ही कारण भेजा गया है। लेकिन तब भी इसका श्रेय तो सरकारको देना ही होगा कि यदि उसके अस्तित्वपर कोई खतरा न हो तो वह लोकमतका खयाल करती है। यह भी सच है कि अभीतक उसका रवैया सरपरस्तीका ही है। लेकिन जबतक अंग्रेज अपने आपको हमारे बराबरीके साझीदार समझनके बदले अपनेको हमारा ट्रस्टी मानते रहेंगे, तबतक उनसे दूसरी उम्मीद भी क्या की जा सकती है; लेकिन सरकार और पाठकोंसे माफी माँगते समय मुझे अपने सहकारीके साथ भी न्याय करना ही होगा। श्री अडवानी ईमानदार और निष्ठावान सहकारी हैं। वे स्थिर मन और ठंडे दिलसे लिखनेकी कोशिश करते हैं। मगर साथ ही वे नौजवान, महत्वाकांक्षी और नातजुर्बेकार हैं। हम सब लोगोंकी तरह ही अपने खयालोंको विदेशी जबानमें लिखनेकी दिक्कत उनके आगे भी है। ऐसी सूरतमें, जैसी गलतियाँ उनसे हुई उनसे बचना मुश्किल ही है। फिर भी मैं इसलिए माफी माँग रहा हूँ कि कहीं पाठक यह न समझ बैठें कि मेरे सहकारी या दूसरे लेखक जो-कुछ भी लिखते हैं, उस सबमें मेरी रजामन्दी है। 'यंग इंडिया' निष्पक्ष और न्याय-पक्षपर रहे, यही मैं चाहता हूँ और हरदम मेरी यही कोशिश रहती है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ९–२–१९२१
  1. यह खरीता भारत सरकारने साम्राज्य सरकारको भेजा था, जिसमें पूर्व आफ्रिकाकी जातीय निर्योग्यता तथा जाति-पृथक्करणकी नीतिका कड़ा विरोध किया गया था।