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असहयोग अर्थात् आत्मशुद्धि

सारा हिन्दुस्तान शराब कब छोड़ेगा, यह विचार पाठकोंको नहीं करना है। यदि वे अपने-अपने गाँवोंको ही संभाल लेंगे तो इसका अर्थ यह होगा कि उन्होंने अपना कर्त्तव्य भली-भाँति निभाया है। जो बात शराबपर लागू है वही तम्बाकूपर भी लागू होती है। हम तम्बाकूको बहुत बुरा नहीं मानते, क्योंकि इसका दुष्परिणाम प्रत्यक्ष नहीं होता। इसका नशा अफीमके जैसा ही है। यह कष्टोंको भुलाता है; लेकिन इसकी आदत पड़ जानेसे पैसेकी वही बर्बादी होती है; इसलिए भी इसे हमें समाप्त ही करना चाहिए। यदि तम्बाकूकी आदत स्वराज्य मिलनेतक भी छुड़वाई जा सके तो उससे बहुत धन बच सकता है और उसका उपयोग अन्यत्र किया जा सकता है।

व्यभिचारके बारेमें तो मैं क्या कहूँ। शराब, बीड़ी आदिको मैं व्यभिचारके मुकाबलेमें पाप ही नहीं समझता। शराब पीनेवाला तो स्वयं ही बिगड़ता है; व्यभिचारी अपने साथ अनेक लोगोंको समेट ले जाता है। व्यभिचारमें से कितने पाखण्ड, कितने झूठ, झगड़े और रोग उपजते हैं, इसके आँकड़े कौन रख सकता है? पर-स्त्री पर कुदृष्टि करने-जैसे पाप कम ही होंगे। तथापि यह पाप कोई कम व्यापक नहीं है। उससे बचने और बचानेका उपाय भी सहज नहीं है। इस पापसे जनताको मुक्त करनेका सर्वत्र लागू होनेवाला उपाय अभी मुझे तो मिल नहीं सका है। वेश्याओंको कौन समझाये? वेश्यागामीसे कौन विनती करे? उसके लिए किन संस्थाओंकी स्थापना की जाये? मैं तो इसी श्रद्धाके आधारपर चुप बैठा हुआ हूँ कि जो लोग राष्ट्रीय आन्दोलनमें भाग ले रहे हैं कमसे-कम वे तो दृढ़तापूर्वक इस पापसे मुक्त हो जायेंगे और जैसे-जैसे जागृति आती जायेगी वैसे-वैसे अन्य लोग भी व्यभिचारसे मुक्त होते जायेंगे। इस व्यभिचारसे प्रजा क्षीण हो गई है, रंक हो गई है और उसमें कायरता आ गई है। पश्चिमके लोगोंमें भी व्यभिचार-दोष कम नहीं है, फिर भी वे कायर क्यों नहीं हैं, यह प्रश्न उठेगा। मैंने अनेक बार बताया है कि मारनेकी शक्तिमें कोई पौरुष नहीं है। पश्चिमके लोगोंने मारनेकी शक्तिकी जो शिक्षा प्राप्त की है, उसके पीछे उनका शराबका व्यसन और व्यभिचार ही हैं, ऐसी मेरी दृढ़ मान्यता है। इसके और भी अनेक कारण है; लेकिन यह कारण सबसे मुख्य है। पश्चिमके लोगोंको मर्द कहना अतिशयोक्ति है।

हाँ, यह बात अवश्य सच है कि उनको हमारी अपेक्षा मरनेका भय कम है; लेकिन यह बात तो हमारी लुटेरी कौमोंमें भी है। जिस हदतक हम अपनी लुटेरी कौमोंको बहादुर मानते हैं, उस हदतक भले ही हम पश्चिमके लोगोंको बहादुर मानें। पश्चिमका मुकाबला करनेकी बात ही विषयान्तर समझी जानी चाहिए। पश्चिमका अनुकरण करके हिन्दुस्तान धर्म-राज्यकी स्थापना नहीं कर सकता, यह बात सबको समझ लेनी चाहिए। पश्चिमके लिए संयमकी आवश्यकता 'नीति' है। पूर्वमें संयम ध्येय रूप है। सत्य बोलना लाभप्रद है, इसलिए सत्य बोलना चाहिए यह धर्म आदेश नहीं है; सत्य ही साक्षात् ईश्वर है यह सभी धर्म मानते हैं। नमाज पढ़नेमें कसरत हो जाती है, लेकिन कोई भी मुसलमान कसरतके खयालसे नमाज नहीं पढ़ता; बल्कि उसे धर्म मानकर ही पढ़ता है। इसलिए यदि हम हिन्दुस्तानको असहयोगके