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१३६. भाषण : महिलाओंकी सभा, कलकत्तामें[१]

२५ जनवरी, १९२१

श्री गांधीने अपने भाषणके दौरान सबसे पहले ब्रिटिश सरकारकी रावण-राज्यसे तुलना की, जिसमें दुष्ट सुखी और सज्जन दुखी रहते थे। उन्होंने आगे कहा कि वर्तमान सरकारने पापका राज्य कायम कर रखा है। जिस तरह रामका जन्म रावणके पाप-राज्यका अन्त करनेके लिए हुआ था, वर्तमान असहयोग आन्दोलनसे भी उसी उद्देश्यकी पूर्ति हो सकती है। महात्माजीने भारतकी माताओं और बेटियोंको सलाह दी कि उन्हें अपने पुत्रों और भाइयोंको सरकारी स्कूलों और कालेजोंसे हटा लेना चाहिए, क्योंकि वहाँ शिक्षाका अर्थ मानसिक गुलामीके अतिरिक्त और कुछ नहीं है।

समाजके सभी वर्गोंमें व्याप्त विलासिताको चर्चा करते हुए श्री गांधीने उसे त्याग देनेका अनुरोध किया। उन्होंने कहा कि आपने जो कपड़े पहन रखे हैं वे पवित्र नहीं हैं। अपने-अपने देवी-देवताओंकी पूजा करनेके लिए तो आप पवित्र वस्त्र ही पहनते हैं। उसी तरह आज जब कि आप देशके हितके लिए एक पवित्र लड़ाईमें जुटे हुए हैं, आपको पवित्र वस्त्र, यानी हाथसे कते और बुने कपड़े ही पहनने चाहिए।

श्री गांधीने आगे कहा कि हर घरमें एक चरखा होना चाहिए। मुझे उम्मीद है कि दो-तीन महीनेके भीतर बंगालके घर-घरमें चरखा होगा। उन्होंने श्रोताओंको अपनी बात समझानेके लिए विद्यासागरके[२] परिवारका उदाहरण दिया, जिसके सभी सदस्य सूत कातते थे।

इसके बाद श्री गांधीने अपनी चादर फैला दी और महिलाओंसे कहा कि मैं चाहता हूँ, आपको जो चीज सबसे प्यारी हो, वही आप भेंट करें। उन्होंने कहा, मुझे पैसा नहीं चाहिए, मुझे तो आपके त्यागकी जरूरत है। इसपर पूरी सभामें कानाफूसी होने लगी, जिसपर श्री गांधीने कहा कि मुझे आपकी ऐसी कोई भी चीज नहीं चाहिए जिसे देनेमें आपको बहुत सोच-विचार करना पड़े। बल्कि आप जो-कुछ भी दें, वह अपनी खुशीसे दें। इसपर सब ओरसे उपहारोंकी वर्षा-सी होने लगी, जिससे श्री गांधीकी चादर भर गई।

[अंग्रेजीसे]
अमृतबाजार पत्रिका, २८–१–१९२१
 
  1. यह सभा चित्तरंजन दासके निवास-स्थानपर हुई थी; इसकी अध्यक्षता गांधीजीने की थी।
  2. ईश्वरचन्द्र विद्यासागर (१८२०–१९०१); बंगालके सुप्रसिद्ध विद्वान् और समाज-सुधारक।