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भाषण : कलकत्तामें

लके नवयुवकोंके लिए, गुजरातके नवयुवकोंके लिए, दक्षिण भारतके नवयुवकोंके लिए मध्यप्रान्त और संयुक्तप्रान्त तथा भारतके उस विशाल भूखण्डमें जाना——जहाँ सिर्फ हिन्दुस्तानी ही बोली जाती है——आज असम्भव-सा है, और इसीलिए मैं आपसे अनुरोध करता हू कि अवकाशके समय कताईके बाद आप जितना समय बचा सकें उस समय में हिन्दुस्तानी भी सीखें। अगर आप लगनसे उसे सीखें तो आप दो महीनेमें कताई और हिन्दुस्तानी, दोनोंको साध लेंगे। मैं आपको यकीन दिलाता हूँ कि कोई भी कुशाग्र बुद्धि और सुशील नौजवान, कोई भी देशभक्त और परिश्रमी युवक ये दोनों चीजें दो महीनेमें ही सीख ले सकता है। उसके बाद आप बेहिचक अपने गाँवोंमें जा सकते हैं, मद्रासके अलावा भारतके किसी भी भागमें जा सकते हैं और जन-साधारणसे अपनी बात कह सकते हैं। एक क्षणके लिए भी यह न सोचें कि आप अंग्रेजीको जनसाधारणके बीच अभिव्यक्तिका सामान्य माध्यम बना सकेंगे। बाईस करोड़ भारतीय हिन्दुस्तानी जानते हैं——उन्हें और कोई भाषा नहीं आती। अगर आप बाईस करोड़ भारतीयोंके दिलोंमें पैठ जाना चाहते हैं तो आपके लिए हिन्दुस्तानी ही एकमात्र भाषा है। अगर आप इस वर्ष, नौ महीनेके इस अर्सेमें सिर्फ ये दो काम ही करें तो यकीन मानिए कि ये काम पूरा करनेतक आपमें एक ऐसा साहस और बल आ जायेगा जो आज आपके पास नहीं है। मैं ऐसे हजारों विद्यार्थियोंको जानता हूँ, जिनसे अगर यह कहा जाता है कि आपको सरकारी नौकरी नहीं मिल सकती तो उनकी आँखोंके आगे अँधेरा छा जाता है। अगर आप इस बातके लिए तुले हुए हैं कि या तो इस सरकारको खतम कर देंगे या फिर इसको सही रास्तेपर लायेंगे तो आप सरकारी नौकरियोंकी कामना किस तरह कर सकते हैं? अगर आप सरकारका सहारा नहीं चाहते तो आपका अंग्रेजीका ज्ञान किस कामका है? मैं अंग्रेजी भाषाके साहित्यिक मूल्यको कम नहीं आँकना चाहता। मैं अंग्रेजी पुस्तकोंमें जो विशाल भण्डार छिपा पड़ा है, उसके महत्वको कम नहीं आँकना चाहता। मैं आपसे यह भी नहीं कहना चाहता कि हमने अंग्रेजी भाषाके महत्वको बहुत बढ़ाकर आँका है, लेकिन मैं आपसे यह अवश्य कहूँगा कि स्वराज्यकी अर्थव्यवस्थामें अंग्रेजीके लिए बहुत कम गुंजाइश है।

स्वराज्य प्राप्तिके लिए आपको अपने अंग्रेजी शब्दोंके ज्ञानमें वृद्धि करनेकी जरूरत नहीं है, और इसलिए मैंने गुजरातके युवकोंको सुझाव दिया है कि वे इन नौ अथवा बारह महीनोंके लिए अंग्रेजी साहित्यके अध्ययनको स्थगित कर दें तथा अपने समय और अवकाशको चरखा चलाने और हिन्दुस्तानी सीखनमें लगायें, और उसके बाद अपने-आपको भारतकी खिदमतमें हाजिर कर दें तथा जिस राष्ट्रीय सेवाका संगठन किया जाये, उसमें शामिल हो जायें। जबतक भारतमें फैले हुए साढ़े सात लाख गाँवों के लिए हम कार्यकर्त्ताओंकी एक सेना तैयार नहीं कर लेते तबतक कांग्रेसने हमें जो महान् संविधान दिया है, उसे हम चरितार्थं नहीं कर सकते। अगर हम भारतके हर गाँवमें एक प्रतिद्वंद्वी संस्थाकी स्थापना करना चाहते हैं, अगर हम चाहते हैं कि भारतके हर गाँवमें कांग्रेसका एक प्रतिनिधि हो तो जबतक भारतके नौजवान अपनी मातृभूमिकी पुकारको नहीं सुनते तबतक हम ऐसा नहीं कर सकते। यह आपका सौभाग्य है कि