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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कहता हूँ कि मैं आपको जो सुअवसर प्रदान कर रहा हूँ उसे हाथसे जाने न दें। अगर हम विदेशी वस्त्रोंका पूरा बहिष्कार सम्भव बना दें तो हम कॉमन्स सभामें लंकाशायरके पचपन प्रतिनिधियोंको निष्क्रिय बना देंगे और आज महत्वाकांक्षी जापान जो भारतकी ओर लोलुप दृष्टिसे देख रहा है, उसकी गतिविधियोंपर भी रोक लगा देंगे। जैसा कि कांग्रेसने बताया है, जबतक भारत अन्न और वस्त्रकी दृष्टिसे आत्मनिर्भर नहीं हो जाता तबतक आर्थिक स्वतन्त्रता प्राप्त नहीं की जा सकती। हम और सब वस्तुओंके बिना निर्वाह कर सकते हैं, लेकिन अन्न और वस्त्रके बिना नहीं कर सकते। भारत जैसा १,९०० मील लम्बा और १,५०० मील चौड़ा विशाल देश सम्भवतया प्राचीन साधनोंको अपनाये बिना आत्मनिर्भर नहीं हो सकता। ईस्ट इंडिया कम्पनीके शासनकालमें बंगालने और सारे भारतने जो-कुछ किया, अगर आप उसके लिए प्रायश्चित्त करना चाहते हों तो भी आपके पास इसके अलावा और कोई उपचार नहीं है, उस प्रायश्चित्तका इसके सिवा और कोई मार्ग नहीं कि आप उन श्रेष्ठ कला-कौशलोंका पुनरुद्धार करें और भारतके लिए पर्याप्त सुतका उत्पादन करें, ताकि कपड़ों और वस्त्रोंके मूल्य गिर जायें और भारतको अपनी खास जरूरतें पूरी करनेके लिए विदेशियोंपर निर्भर न करना पड़े।

तो, बंगालके नौजवानो, अगर आप एक वर्षके भीतर स्वराज्य प्राप्तिके लिए उद्यम करना चाहते हैं, तो आप उस व्यक्तिकी सलाह मानिए जिसने अनेक प्रयोग किये हैं, जिसके सम्मुख यह सिद्धान्त १९०८ में ही स्पष्ट हो गया था[१], और जो अभीतक इससे रंचमात्र भी विचलित नहीं हुआ है। भारतकी आर्थिक समस्याका मैंने जितना ज्यादा अध्ययन किया, भारतके मिल-मालिकोंकी जितनी ज्यादा बातें सुनी, उनसे मेरा यह विश्वास उतना ही ज्यादा पक्का होता गया कि जबतक हम भारतके घर-घरमें चरखेका चलन शुरू नहीं करवा देते तबतक उसे आर्थिक मुक्ति और स्वतन्त्रता मिलना असम्भव है। आप चाहे किसी भी मिल-मालिकके पास चले जायें, वह आपको यही बतायेगा कि जहाँतक कपड़ेकी आवश्यकताकी पूर्तिका सवाल है, भारत अगर सिर्फ अपनी मिलोंके सहारे आत्म-निर्भर बनना चाहता है तो इस स्थितिको प्राप्त करनेमें उसे पचास वर्ष और लगेंगे। इस सम्बन्धमें आपको पूरी जानकारी दे देनेके खयालसे मैं इतना और कहना चाहूँगा कि आज भी सैकड़ों-हजारों बुनकर बुनाईका काम कर रहे हैं। वे घरेलू सूतसे कपड़ा बुन सकते हैं, लेकिन उन्हें विदेशी सूतपर निर्भर करना पड़ता हैं, क्योंकि देशी मिलें उनकी सूतकी माँग पूरी नहीं कर सकतीं। अतः कालेज छोड़ देनेवाले बंगालके नौजवान मित्रोंसे मेरा अनुरोध है कि आप उम्मीद और हिम्मतके साथ आगे बढ़ें और कमसे-कम स्वराज्य-प्राप्ति होनेतक के लिए इस उपेक्षित हस्तकलाको अपना लें। इस लक्ष्यको प्राप्त कर लेतेके बाद ही आप और किसी बातके सम्बन्धमें सोचें।

मैंने एक और बात सुझाई है। मैंने और आपने, बल्कि हम सभीने उस सच्ची शिक्षाकी उपेक्षा कर दी है जो हमें राष्ट्रीय स्कूलोंमें प्राप्त हो सकती थी। बंगा-

  1. दक्षिण आफ्रिकामें।