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१. पत्र: ‘बॉम्बे क्रॉनिकल’ को [१]

बम्बई

१९ नवम्बर, १९२०

महोदय,

मैंने अभी-अभी आपके द्वारा उद्धृत 'एक्सप्रेस' का वह अंश पढ़ा, जो मेरी रायमें राष्ट्रीय लिपिका उर्दू होना उचित बताता है। जाहिर है कि किसीने मेरे साथ मजाक किया है,क्योंकि मेरी कभी ऐसी राय नहीं रही। मैंने अपने दोस्त और सहयोगी हसरत मोहानीसे[२] इतना ही कहा है कि राष्ट्रीय शिक्षाकी किसी भी योजनामें देवनागरी और उर्दू लिपियाँ अनिवार्य होनी चाहिए। मेरी तो राय है कि देवनागरी संसारमें सबसे ज्यादा वैज्ञानिक और पूर्ण लिपि है, अतः इस दृष्टिसे सबसे उपयुक्त राष्ट्रीय लिपि है। परन्तु आज मुसलमानोंको इसे स्वीकार करनेमें जो कठिनाई है, उसका हल में नहीं सोच पाता; इसलिए मेरा विचार है कि शिक्षित-वर्गको दोनों ही लिपियोंकी समान रूपसे अच्छी जानकारी होनी चाहिए। तब जिसमें अधिक शक्ति होगी और जो ज्यादा सरल होगी वह राष्ट्रीय लिपि बन जायेगी, विशेषकर जब हिन्दू-मुसलमान तथा अन्य वर्ग एक-दूसरेपर सन्देह करना सर्वथा समाप्त कर देंगे और धर्मेतर प्रश्नोंका शुद्ध राष्ट्रीय तरीकेसे फैसला करना सीख लेंगे।

अंग्रेजी पत्र (एस० एन० ७३४४) की फोटो-नकलसे।

२. पत्र: के० वी० रंगास्वामी आयंगारको

बम्बई

१९ नवम्बर, १९२०

प्रिय श्री रंगास्वामी आयंगार,[३]

सहपत्रों सहित आपका पत्र मिला। मुझे खेद है कि आपने प्राविधिक आपत्तियाँ उठाई हैं; यद्यपि मेरा खयाल था कि आप अपनाये गये तरीकेसे सहमत हो गये हैं।

१९―१

  1. हस्तलिखित मसविदेसे लिया गया यह पत्र, बॉम्बे क्रॉनिकलमें २२-११-१९२० को प्रकाशित हुआ था।
  2. १८५७-१९५१; राष्ट्रवादी मुसलमान नेता; खिलाफत आन्दोलनमें सक्रिय भाग लिया और जो नवम्बर १९१९ के खिलाफत सम्मेलनमें गांधीजीके मुख्य विरोधी थे।
  3. मद्रासके कांग्रेसी नेता।