१२४. पत्र : सी॰ एफ॰ एण्ड्र्यूजको
रेलगाड़ीमें
१९ जनवरी, [१९२१][१]
मैंने अभी-अभी तुम्हारा बड़े दिनके अवसरपर लिखा पत्र और वह पत्र भी पढ़ा जो तुमने लालवन्दके[२] सम्बन्धमें लिखा है। मैं तुमसे सहमत हूँ कि लालचन्द अभी बहुत अनुभवहीन है और उसे मोम्बासा नहीं भेजा जाना चाहिए। वे उसे ६०० रुपये देना ठीक नहीं मानेंगे। मैंने अभीतक पूर्वी अफ्रिकाका खरीता नहीं पढ़ा है, लेकिन जिस लेखके बारेमें तुमने कहा था, वह पढ़ लिया है। लालचन्दकी शैली मुझे बिलकुल पसन्द नहीं है। अगर मैंने यह लेख पहले देखा होता तो इसे प्रकाशित ही नहीं होने देता।
आशा है, तुम स्वस्थ-सानन्द होगे।
पियर्सनके[३] पत्रको मैं एक बहुत मूल्यवान उपहार मानता हूँ। बड़ोदादाने मुझे एक और पत्र भेजा है। वे बड़े नेक आदमी हैं। उनके आशीर्वादोंका मेरे लिए बड़ा महत्व है।
मैं इसी २१ को बम्बई से कलकत्तेके लिए प्रस्थान कर रहा हूँ।
सस्नेह,
तुम्हारा,
मोहन
अंग्रेजी पत्र (जी॰ एन॰ ९५७) की फोटो-नकलसे।
- ↑ २९ जनवरी, १९२१ को लालचन्दके नाम लिखे पत्रके पहले अनुच्छेदसे प्रकट होता है कि यह पत्र १९२१ में लिखा गया था।
- ↑ ये यंग इंडियाके सम्पादकीय विभागमें काम करते थे।
- ↑ विलियम विन्स्टेनली पिंपर्सन; मिशनरी; भारतीयोंके एक सक्रिय समर्थक; कुछ समयतक शान्ति-निकेतनमें अध्यापन कार्य किया; १९१४ में नेटालके चीनी संस्थानोंके भारतीय मजदूरोंकी दशाका अध्ययन किया।