१००. भाषण: तिलक-स्मारक स्वराज्य कोषपर[१]
नागपुर
३१ दिसम्बर, १९२०
मैं अभी-अभी सभापतिजीकी अनुमतिसे असहयोग प्रस्तावके उस भागके विषय में कुछ बातें कह रहा था जिसे आप सब हर्षध्वनिके साथ स्वीकृत कर चुके हैं। मेरा मतलब अब अखिल भारतीय “तिलक स्वराज्य कोष” से है। मुझे आशा है कि सभी प्रतिनिधि इस कोष में ज्यादा से ज्यादा दान देंगे। इस प्रकार वे दो उद्देश्योंको साध सकेंगे। इस तरह वे एक ऐसे व्यक्तिकी स्मृति सँजोने और उसे अमर बनाने में समर्थ होंगे जिसके प्रति समस्त देश बड़ी श्रद्धा रखता था और जिसने देश-सेवामें अपना जीवन ही उत्सर्ग कर दिया। मुझे किंचित् भी सन्देह नहीं है कि यह विशाल स्मारक जिसे आपने उस महापुरुषकी स्मृति में खड़ा करनेका निश्चय किया है, बड़ी शानके साथ सफल होगा। लेकिन ऐसी सफलता तभी सम्भव हो सकती है जब हममें से प्रत्येक भाई बहन मिलजुलकर हाथ बँटायें। आप लोगों में से जो सज्जन यहाँ अर्थात् पण्डाल छोड़नेके पहले धन देना चाहें वे दे सकते हैं; लेकिन मैं आशा करता हूँ कि जब आप अपने घर पहुँच जायेंगे तब भी आप इसे भूलेंगे नहीं बल्कि यथासम्भव दान देना अपना पवित्र कर्त्तव्य मानेंगे और इस आशा और पूर्ण विश्वासके साथ कि हमें एक साल में स्वराज्य प्राप्त हो जायेगा, आगे भी देते रहेंगे। यदि हमने इस कार्यके लिए यथाशक्ति दान नहीं दिया तो मेरा खयाल है कि हम स्वराज्य पानेके योग्य नहीं माने जा सकेंगे। लेकिन आप तो स्वराज्य मिलना ही चाहिए यही मंत्र जपते हैं। यदि आप तसवीरके ऊपर लिखे शब्दों, “स्वराज्य हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है”[२] को देखें और यदि आप उनकी वह आशा एक वर्ष में ही पूरी कर दिखाना चाहें तो आपको इस स्मृति-चिह्नको सफल बनानेके लिए भरपूर कोशिश करनी होगी। आप अपना चन्दा प्रधान-मन्त्रीको भेज सकते हैं। मैं प्रसन्नताके साथ” “इंडियन सैंडो”[३]की ओरसे दिये गये १००१) रु० तथा दो अन्य बिलकुल अपरिचित व्यक्तियों द्वारा दी गई दो अंगूठियोंकी प्राप्तिकी घोषणा करता हूँ। (जोर की हर्षध्वनि)। मुझे यह घोषणा करते हुए भी बड़ा हर्ष हो रहा है कि सेठ जमनालाल बजाजने जो रोग-शैयापर पड़े हैं और स्वागत समितिके अध्यक्ष हैं, मुझे इस आशयका एक सन्देश भेजा है कि वे मुझे १ लाख रुपया सौंपना चाहते हैं। (जोरकी तथा देरतक हर्षध्वनि) जो इस सार्वजनिक कोषका भाग माना जायेगा; परन्तु उसका
- ↑ २ अक्तूबर, १९२० को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीने “तिलक मेमोरियल फंड” (तिल्क स्मारक-कोष) इकट्ठा करनेके सम्बन्ध में निर्णय किया था परन्तु उस प्रस्तावको कार्यान्वित नहीं किया गया था। दिसम्बर १९२० में कांग्रेसके वार्षिक अधिवेशनमें उक्त प्रस्ताव पास किया गया।
- ↑ लोकमान्य तिलककी प्रसिद्ध उक्ति।
- ↑ प्रोफेसर राममूर्ति जिन्होंने ऊपरका वाक्य सुनते ही चन्दा दिया था।