७५. भाषण: ढाकामें
१५ दिसम्बर, १९२०
पिछली बार जब मौलाना शौकत अली ढाका आये तब भी मेरी यहाँ आनेकी बड़ी इच्छा थी। आज मुझे यहाँ आनेपर बहुत खुशी हुई है। मुझे दुःख है कि आज पहली बार मुझे ऐसा लगा है कि मेरी आवाज साथ नहीं दे रही।
इस सरकारने भारतीयोंके साथ एक बहुत बड़ा अन्याय किया है। इसने हमारे मुसलमान भाइयोंको बहुत धोखा दिया है। सभी भारतीय जानते हैं कि भारतीयोंको पंजाबमें पेटके बल रेंगाया गया था। बहुतसे निर्दोष लोगोंको पंजाबके न्यायाधीशोंने मौतकी सजाएँ दीं और बहुतोंको जेल भेज दिया है। पंजाबमें हमारे छात्रोंके साथ बड़ा अन्याय किया गया है। छोटे-छोटे बच्चोंको वहाँ चार-चार बार [ब्रिटिश झंडेको] सलाम करनेकी आज्ञा दी गई थी। मेरा खुदका खयाल है कि जिस सरकारने हमारे साथ इतना बड़ा अन्याय किया, उसके प्रति वफादार रहना पाप है। स्वतन्त्रताको प्यार करनेवाला प्रत्येक भारतीय मेरी ही तरह सोचेगा। उसका कर्तव्य है कि वह या तो इस सरकारको मिटा दे या इसे सुधार दे। (तालियाँ) मुझे इस बातका दुःख नहीं है कि मेरी आवाज काम नहीं दे रही है; लेकिन आपको यह जानना चाहिए कि जो काम आप करने जा रहे हैं उसमें आपको अपनी आवाजका इस्तेमाल करनेकी जरूरत नहीं। आपके लिए दो काम बहुत जरूरी हैं: पहला, सभाएँ करना और उसमें प्रस्ताव पास करना; और दूसरा, उन प्रस्तावोंपर अमल करना। हमारे सामने यह अवसर आ गया है। हमारा ज्यादातर काम ठोस होगा। अब हमको जुलूस निकालना बन्द कर देना चाहिए, क्योंकि अबतक हम देख चुके हैं कि उनसे भारतके लोगोंको कोई लाभ नहीं हुआ। हममें प्रबन्धकी शक्ति नहीं है । “हिन्दू-मुसलमानोंकी जय”――यह मेरे खयालसे ईश्वरसे एक तरहकी प्रार्थना है। वन्देमातरम्-गीत भारत माताकी वन्दना है। हमारे बंगाली भाइयों-जैसा शक्तिशाली संगीत भारतमें अन्यत्र कहीं नहीं मिल सकता। यदि आप अपने देशकी पूजा सच्चे हृदयसे करना चाहते हैं तो जो-कुछ यह सिखाता है वह आपको सीखना चाहिए। मेरे खयालसे यह शिक्षा सामान्य लोगोंमें प्रचारित की जानी चाहिए। पिछले ३५ वर्षसे हम बहुत दूषित शिक्षा पाते रहे हैं; नतीजा यह है कि उन्नति करने के बजाय हम ३५ वर्ष पीछे पड़ गये हैं। स्वर्गीय दादाभाई नौरोजीने लिखा था[१] कि सेनापर और रेलोंपर खर्च दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है। भारतके व्यापारकी ऐसी दूरवस्था हुई है कि देशका करोड़ों रुपया हर साल विदेशोंमें चला जाता है। रौलट ऐक्ट[२], प्रेस ऐक्ट[३], छात्रोंका बाध्य किया जाना,