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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

करते हैं, आज ही दोस्ती कर लें यदि अंग्रेज खिलाफतके मामलेमें न्याय करें, जो कि उनके लिए सहज सम्भव है।

मैं निश्चिन्त होकर कह सकता हूँ कि यह संघर्ष व्यक्तिपरक नहीं हैं। हिन्दू और मुसलमान दोनों ही अंग्रेजोंको, यदि वे भारतके प्रति अपनी नेकी, सच्चाई और वफादारीका निश्चित सबूत दें, दुआ देंगे। इस तरह असहयोग एक देवी आन्दोलन है। यह भारतको शुद्ध करेगा और सशक्त बनायेगा; सशक्त भारत संसारके लिए एक वरदान होगा जब कि आजका दुर्बल और असहाय भारत मानवताके लिए अभिशाप है। भारतीय सिपाहियोंने अनिच्छापूर्वक टर्कीको नष्ट करनेमें[१] सहायता दी है और अब वे महान् अरव राष्ट्रके चुनिन्दा जवानोंको नष्ट करने में लगे हैं। मुझे ऐसा एक भी युद्ध याद नहीं आता जिसमें ब्रिटिश सरकारने भारतीय सिपाहीका उपयोग मानवताके हितमें किया हो। और कितने शर्मकी बात है कि फिर भी भारतीय राजागण इसमें गर्वका अनुभव करते हुए कभी नहीं थकते कि उन्होंने अंग्रेजोंकी वफादारीके साथ मदद की। क्या इससे भी अधिक पतनकी कोई गुंजाइश है?

[अंग्रेजी से]
यंग इंडिया, ८-१२-१९२०

५६. सामाजिक बहिष्कार

हैदराबाद सिन्धसे एक संवाददाताने बहिष्कारके सम्बन्धमें एक पत्र[२] लिखा है। मैं उसे सहर्ष प्रकाशित कर रहा हूँ। पत्र लेखकने श्री खापर्डेके[३] साथ किये जा रहे दुर्व्यवहारका उल्लेख किया है। कहाँ हैदराबाद सिन्ध और कहाँ अमरावती। में नहीं जानता कि संवाददाताने जिन परेशानियोंका वर्णन किया है, श्री खापर्डेको उनका सामना करना पड़ रहा है या नहीं। आशा करता हूँ कि उनके बारेमें संवाददाताको जो जानकारी दी गई है उसमें काफी अतिशयोक्ति है।

फिर भी संवाददाता द्वारा प्रस्तुत मामला गम्भीर और महत्वपूर्ण है। यदि हम मतभेदोंके कारण सामाजिक बहिष्कारोंकी घोषणा करने लगें तो यह एक खतरनाक बात होगी।

किसीको भोजन और पानी न मिलने देना अहिंसाके सिद्धान्तके सर्वथा प्रतिकूल होगा। असहयोगकी यह लड़ाई वचनको कर्ममें बदलनेका एक प्रचार-कार्यक्रम है;

  1. प्रथम विश्व-युद्ध में।
  2. यहाँ प्रकाशित नहीं किया गया है। संवाददाताने शिकायत की थी कि खापर्डेका पंचायतने बहिष्कार किया है और उनके नौकरको पंचायतका कुआं इस्तेमाल करनेसे रोका गया है क्योंकि वे कांग्रेसके असहयोग कार्यक्रमसे कुछ मुद्दोंपर मतभेद रखते हैं। इस बहिष्कारको कुछ असहयोगियोंने सही भी बताथा था।
  3. गणेश कृष्ण खापर्डे (१८५४-१९३८); वकील, वक्ता, और अमरावतीके जनसेवक; मॉण्टेग्यु-चैम्सफोर्ड सुधारोके अन्तर्गत राज्य परिषद्के सदस्य; वे गांधीजीके असहयोग कार्यक्रमके पक्षमें नहीं थे।