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भाषण: छपरामें

देना निरर्थक है। ३५ वर्षोंसे कांग्रेस प्रस्ताव पास करती आ रही है और उसके नेता कांग्रेस मंचोंसे भाषण देते आ रहे हैं, परन्तु इस सबसे कुछ भी नहीं मिला। बल्कि ५० वर्ष पहले की अपेक्षा आज हम अधिक बुरी हालतमें हैं। इस स्थितिका कारण क्या है? आज भारतीय पहलेसे कहीं अधिक अनुपातमें असैनिक सेवाओंमें हैं। लॉर्ड सिन्हा अब एक प्रान्तके गवर्नर हैं।[१] फिर भी में क्यों ऐसा कहता हूँ कि हमारी दशा पहलेसे बुरी है? यदि हम पहलेकी अपेक्षा अधिक गुलाम बन गये होते, तो क्या अधिकारीगणोंने इस्लामको जैसा धोखा दिया है वैसे धोखा दिया जा सकता था और फिर इसके बाद क्या सरकार छोटे-मोटे तोफे दिखाकर उन्हें फुसला ले सकती थी? इस धोखेके बाद भी सरकार कहती है कि दोष उसका नहीं है। मैं चाहता हूँ कि आप लोग समझें कि छोटी-छोटी चीजों और मीठी बातोंसे फुसलानेका प्रयत्न करनेमें सरकारका क्या अभिप्राय है। सरकार तो जहरसे भरी है; फिर भी हम लोग जिस प्रकारकी आत्मप्रवंचनामें पड़े हुए हैं सो केवल गुलामों द्वारा ही सम्भव है। पंजाबके ही पठान और सिख जवानोंने सरकारके लिए अपना खून बहाया; और फिर इसी प्रान्तके लोगोंको पेटके बल रेंगाया गया, सड़कोंपर उन्हें कोड़े लगाये गये, उन्हें ब्रिटिश ध्वजको सलाम करनेपर मजबूर किया गया और अधिकारियों द्वारा स्त्रियोंके घूँघट हटाये गये। यदि हमारी गुलामीके बन्धन पहलेसे भी अधिक दृढ़ न हो चुके होते तो क्या यह सब हो सकता था? मैं समझता हूँ कि जब गुलामको अपनी बेड़ियाँ अच्छी लगने लगती हैं तो उसकी गुलामीकी प्रवृत्ति स्थायी बन जाती है। अगर वे उन बेड़ियोंको तोड़कर आजाद होनेकी कोशिश करें तो वे ऐसा कर सकते हैं; मगर आज तो वे अपनी बेड़ियोंको ही पसन्द करने लगे हैं और समझते हैं कि उनकी इस गुलामीसे ही स्वतन्त्रता मिलेगी; तब मुझे लगता है कि उनके बन्धन पहलेसे भी दृढ़ हो गये हैं। लोगोंकी दासताकी प्रवृत्तिके ही कारण बार-बार उन्हें असहयोगका सिद्धान्त और उसके आचरणके बारेमें समझाना पड़ता है। पहले लोग ऐसे नहीं थे, जैसे अब हैं। थोड़े-से बैरिस्टर थे। मैंने इतिहासमें जो पढ़ा है उससे ऐसा नहीं लगता कि सौ साल पहले लोगोंकी दशा आजसे बदतर थी। लोग अधिक खुश और समृद्ध थे और किसानोंका जैसा दमन हम आज देखते हैं, नहीं था। यद्यपि मैं मानता हूँ कि चम्पारनमें सौ साल पहले भी जमींदार जुल्म करते थे। फिर भी मैं यह नहीं मान सकता कि जैसे जुल्म आज होते हैं वैसे जुल्म उन दिनों करना कभी सम्भव भी हो सकता था। इसलिए कांग्रेस और लीगने हम लोगोंको बताया कि इस्लामको बचाने और पंजाबको न्याय दिलानेका एकमात्र तरीका अहिंसात्मक असहयोग ही है। आन्दोलनके अहिंसात्मक स्वरूपपर मेरा जोर है। यदि हम तलवार खींचेंगे तो सम्भव है वह हमारी ही मृत्युका कारण बन जाये। मैं तलवारके जरिये कोई उन्नति या स्वराज्य नहीं चाहता। परन्तु कुछ मुसलमान और कुछ हिन्दू भी मुझसे सहमत नहीं हैं। उनसे मेरा निवेदन

  1. १९२० में वे उड़ीसा और बिहारके गवर्नर हो गये थे।