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२५६. भाषण : बेलगाँवकी सार्वजनिक सभामें[१]

८ नवम्बर, १९२०

मारुतिके मन्दिरमें मैं जो दृश्य देख आया हूँ, उसका मुझपर जो असर हुआ, उसका मैं वर्णन नहीं कर सकता। ऐसी ही बात पूनामें देखी। हमपर उन्होंने यह समझकर प्रेम और आभूषण बरसाये हैं कि वे स्वराज्यके लिए, रामराज्य प्राप्त करनेके लिए माँगे गये हैं। इतना दान हमारे करोड़पतियोंने नहीं दिया। हम उनसे दान लेनेके लिए उनके पैर चूमते हैं, आजिजी करते हैं, तब कहीं वे कुछ पिघलते हैं। बहनोंसे मुझे कुछ भी अनुनय-विनय नहीं करनी पड़ी। उन्होंने तो केवल उमंगसे, भावनासे ही जो देना था, दिया। और उन्होंने भावनासे जो दिया, वह करोड़ोंसे भी अधिक है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २८-११-१९२०
 

२५७. हमारे मार्गकी कठिनाइयाँ

हमारी कठिनाइयाँ दो प्रकारकी हैं; एक तो वे जो हमपर बाहरसे लादी जाती हैं और दूसरी वे जिनको हम स्वयं पैदा कर लेते हैं। दूसरे प्रकारकी कठिनाइयाँ कहीं ज्यादा खतरनाक हैं; हम बहुधा उन्हें गलेसे चिपकाये रहते हैं और दूर नहीं करना चाहते। उदाहरणके लिए हालमें बम्बईमें श्रीमती बेसेंटकी सभायें जो उपद्रव हुआ वह खुद हमारे द्वारा पैदा की गई परेशानी है। यदि किसी सभाको 'राजद्रोही' सभा घोषित कर दिया जाये तो इस घोषणा से निपटना आसान है; किन्तु श्रीमती बेसेंटकी सभाओंमें हुए उपद्रवोंसे निपटना अपेक्षाकृत कठिन है। 'राजद्रोही' सभाओंके निषेधसे हमें शक्ति मिलती है; किन्तु इसमें शक नहीं कि यदि हम उपद्रव करते हैं तो उससे हमारे उद्देश्यको हानि पहुँचती है। श्रीमती बेसेंटकी सभायें शोर मचाया गया; यह एक तरहकी हिंसा है, यह अहिंसात्मक असहयोगके सिद्धान्तसे विलग हो जाना है। ऐसी मौखिक हिंसा आसानीसे शारीरिक हिंसामें बदल सकती है।

उपद्रवकारियोंको समझना चाहिए कि उस पवित्र उद्देश्यपर जो उनके दिलमें है इसका क्या असर पड़ेगा। अगर हम हुल्लड़बाजीकी आदत डाल लें तो यह स्वराज्यके लिए सर्वाधिक बुरी चीज है। स्वराज्यमें विचारोंके प्रति परस्पर सहिष्णुता, फिर वे हमें कितने ही अप्रिय क्यों न हों, ग्रहीत है। यदि असहयोगवादी दूसरे पक्षके विचार सुननेसे इनकार करते हैं, तो फिर उनपर भी वही आरोप लगाया जा सकता है जो वे

  1. महादेव देसाईके यात्रा-विवरणसे संकलित।