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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

घर कर गई है कि अपने दुःखका निवारण कर सकने योग्य कोई भी बात करनेकी उसमें शक्ति नहीं है। इससे यदि कोई उनका गम गलत कर दे अर्थात् क्रोधके नशेके स्थानपर दूसरा कोई नशा प्रस्तुत कर दे तो वह उसे लपककर लेती है। यही कारण है कि आजकल समाचारपत्रों में ज्यादातर मसालेदार लेख देखने में आते हैं। इसके अतिरिक्त पढ़नका मर्ज भी बढ़ गया है। और लोगोंको लम्बे, लच्छेदार लेख पढ़नेकी आदत पड़ गई है। ये सब नशेके चिह्न हैं। यूरोप में अनेक लोगोंको ऐसी आदत हो जाती है, वे पल-भरके लिए भी पुस्तक नहीं छोड़ सकते। दिन रात ज्ञानवार्ता नहीं पढ़ी जा सकती, इसीसे 'शिलिंग शॉकर' का उपद्रव बढ़ गया है। 'शिलिंग शॉकर' अर्थात् रोमांचित कर देनेवाला अठन्नीका उपन्यास। मर्यादापूर्ण भाषामें लिखे गये उपन्यास हमें रोमांचित नहीं करते। फलतः कानों में कीड़े पैदा कर देनेवाली भाषामें असम्भव कहानियाँ लिखकर सिर्फ धन कमानेकी खातिर लेखक और प्रकाशक व्यक्तियोंको भरमाते हैं तथा लाखों स्त्री-पुरुषोंको ऐसे 'शिलिंग शॉकर' पढ़नकी व्याधि ही हो गई है। इस समय ऐसी व्याधिसे घिर जानेका भय हमारे सम्मुख भी आ खड़ा हुआ है।

'नवजीवन' का एक प्रयत्न तो इस जोखमसे बचाना भी है। 'नवजीवन' अपने इस उद्देश्य से विचलित नहीं होगा, इसलिए उपर्युक्त पत्र-लेखकको धीरज रखना होगा।

तथापि यह बात मुझे स्वीकार करनी पड़ेगी कि उसकी शिकायतमें कुछ सार अवश्य है। अधिक सुन्दर लेख देनेकी, अधिक सुचारु ढंगसे प्रकाशित करनेकी हमारी जो आशा थी वह पूर्णतः फलीभूत नहीं हुई है। पैसा होनेपर भी हमें ऐसी बड़ी मशीन नहीं मिल सकी है जिसपर बड़ी संख्यामें प्रतियाँ निकाली जा सकें। धनसे प्रामाणिकता भी नहीं जुटाई जा सकती। अर्थात् प्रामाणिक कार्यकर्ताओंको पाना कठिन है। कागजके भाव बहुत तेज हो गये हैं जबकि 'नवजीवन' आरम्भ करते समय इस बातकी आशा थी कि कागजके भाव गिर जायेंगे। ये सब अनिवार्य कठिनाइयाँ हैं।

तथापि 'नवजीवन' को लोगोंके सम्मुख रखते हुए हमें तनिक भी संकोच नहीं होता। इसमें एक भी वाक्य बिना सोचे-समझे नहीं लिखा जाता। 'नवजीवन' के उद्देश्यको जो लोग अपने मनमें याद रखेंगे वे लोग तबतक 'नवजीवन' का परित्याग नहीं करेंगे जबतक 'नवजीवन' अपने उद्देश्यपर दृढ़ रहेगा। उद्देश्य है, दैनन्दिन घटनाओंपर नया प्रकाश डालना; लोगोंके सम्मुख अनुभूत और नवीन विचारोंको प्रस्तुत करना और जो सत्य जान पड़े उसे सरकार अथवा जनताका भय माने बिना व्यक्त करना। इस प्रतिज्ञासे 'नवजीवन' तनिक भी विचलित नहीं हुआ है। इसी कारण वह धूलिसात नहीं हुआ है और इसीलिए वह किसीका मोहताज भी नहीं है। उसके मार्ग में अनेक कठिनाइयाँ है, जिन्हें पार करनेका वह प्रयत्न करता रहता है और करता रहेगा।

प्रकाशन सम्बन्धी त्रुटियाँ होते रहना शोचनीय है। अनेक बार हम जो लिखना चाहते हैं उसे लिखनेका समय नहीं मिलता और फिर उससे कुछ घटिया सामग्री देनी पड़ती है। लेकिन इस कारण कोई यह नहीं कह सकता कि जिस उद्देश्यसे प्रेरित हो 'नवजीवन' आरम्भ किया गया था उस उद्देश्यकी पूर्ति नहीं होती। 'नवजीवन' के