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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

थी। परिणामस्वरूप 'लैंड लीग' का संगठन हुआ, जो आइरिश राष्ट्रीयताका उद्गम-केन्द्र बन गया।"

मोतीबाबूने महात्माजीको सम्बोधित करते हुए कहा——"तो मेरे भाई, आपको जनसाधारणके लिए एक सामान्य नारेके बारेमें सोचना चाहिए, जो उनके दिलपर सीधा असर कर सके। मुझे लगता है कि दो चीजें हैं, जिन्होंने आम जनता तथा शिक्षित-वर्ग, दोनोंको एक भयानक दुःस्वप्नकी तरह त्रस्त कर रखा है। एक तो है पुलिसका जुल्म, और दूसरा है इस अपराधी प्रशासनका निष्ठुरतापूर्ण स्वरूप। क्या इन दोनों बातोंको लेकर सबको प्रभावित करनेवाले एक नारेको जन्म नहीं दिया जा सकता?" महात्मा गांधीने कहा कि मैं इस मामलेपर विचार करूँगा।

इसके बाद महात्मा गांधीने कौंसिलोंके बहिष्कारपर अपने विचार स्पष्ट किये? उन्होंने कहा कि जो लोग कौंसिलोंमें जाते हैं उनमें से अधिकांशका नैतिक बल टूट जाता है। हमारे ये प्रतिनिधि लोग जितनी सेवा कौंसिलोंमें रहकर कर सकते हैं, उससे कहीं अधिक सेवा वे कौंसिलोंसे बाहर रहकर कर सकते हैं। मोतीबाबू इस बातसे सहमत थे।

इसके बाद ब्रिटिश न्यायालयोंके बहिष्कारका प्रश्न आया। महात्मा गांधीने कहा कि ये न्यायालय हमारे देशवासियोंको नैतिक और बौद्धिक दासतामें रखनेके उतने ही बड़े साधन हैं, जितने बड़े साधन कौंसिलें हैं। हमें इन बुराइयोंसे हर हालतमें छुटकारा पाना है।

मोतीबाबूका उत्तर था कि मैं आपकी बातसे सहमत हूँ, परन्तु चोट तो बुराईकी जड़पर करनी चाहिए। अधिकांश वकील अपनी वकालत नहीं छोड़ेंगे, क्योंकि इसीके बलपर तो वे मोटरगाड़ियाँ आदि रख पाते हैं और अन्य ऐश कर सकते हैं। आप जनताके बीच जाकर उसे समझाइए कि लोग मुकदमेबाजी छोड़ दें। महात्मा गांधीने जवाब दिया कि मैं ऐसे बहुत-से वकीलोंको जानता हूँ जो अपनी वकालत छोड़नेको तैयार हैं। मोतीबाबूने कहा कि इसपर विश्वास करना मेरे लिए बड़ा कठिन है। तथापि यदि कुछ वकील ऐसा करनेको राजी भी हों, तो अधिकांश तो राजी नहीं ही होंगे। हमें बुराईकी जड़पर ही प्रहार करना चाहिए।

बच्चोंको स्कूलोंसे हटानेके प्रश्नपर महात्मा गांधीने कहा कि बच्चोंकी मानसिक वृत्तियाँ स्कूलोंमें ही ढलती हैं। जब महात्मा गांधीसे यह बतानेका आग्रह किया गया कि यदि बच्चे स्कूलोंसे हटा लिये जाते हैं तो वे क्या करेंगे, तब उन्होंने कहा कि उस हालतमें नये स्कूल खोले जायेंगे। जबतक देशके भविष्यके निर्माता ये बच्चे अपने बौद्धिक पोषणके लिए इन स्कूलोंपर निर्भर रहेंगे तबतक इस देशकी किस्मत सुधरनेकी कोई आशा नहीं है।

बाबू मोतीलालने जवाब दिया कि वर्तमान स्कूल और कालेज चूँकि हमारे पैसेसे चलाये जा रहे हैं, न कि इंग्लैंडके पैसेसे, इसलिए मैं नहीं समझता कि हमारे बच्चे