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लोकशाही बनाम भीड़शाही

विकासके लिए कर रहा हूँ। और मैं सभी शंकालु नेताओंसे सादर अनुरोध करता हूँ कि पहलेसे ही वे राष्ट्रीय शुद्धीकरण, प्रशिक्षण और बलिदानकी प्रक्रियाकी भर्त्सनासे अलग रहकर इस काममें सहायता दें।

अगले सप्ताह मैं इस बातके कुछ दृष्टान्त[१]दूँगा कि किस प्रकार भीड़की अव्यवस्थाके भीतरसे व्यवस्था कायम कर दी गई। जनतापर मुझे अगाध विश्वास है, उसके स्वभावमें आश्चर्यजनक संवेदनशीलता होती है। नेतागण उसमें अविश्वास न करें। असहयोगकी इस सामूहिक भर्त्सनाका अगर हम विश्लेषण करें तो उसका अर्थ यही होगा कि ये लोग जनताकी अपने-आपको नियन्त्रित रखनेकी क्षमतामें अविश्वास कर रहे हैं। यह लेख कुछ लम्बा हो गया है। इसलिए फिलहाल तो मैं मार्गदर्शनके लिए और तत्काल आचरण करनेके लिए कुछ नियम सुझाकर इसे समाप्त करूँगा।

१. प्रदर्शनोंके लिए अधकचरे स्वयंसेवक नियुक्त न किये जायें। इसलिए उनका सरगना उसीको बनाना चाहिए जो सबसे अधिक अनुभवी हो।

२. प्रत्येक स्वयंसेवकके पास हिदायतोंकी एक पुस्तिका होनी चाहिए।

३. प्रदर्शनोंके समय स्वयंसेवकों का मुआयना होना चाहिए और उन अवसरोंपर उन्हें विशेष हिदायतें देनी चाहिए।

४. स्टेशनोंपर स्वयंसेवकोंको एक ही स्थानपर, अर्थात् जहाँ स्वागत- समितिके सदस्य खड़े हों वहीं, केन्द्रित नहीं रहना चाहिए। उन्हें भीड़में अलग-अलग स्थानोंपर तैनात करना चाहिए।

५. स्टेशनके भीतर बहुत ज्यादा लोगोंको प्रवेश नहीं करना चाहिए। उनके प्रवेश करनेका यही परिणाम होगा कि लोगोंको आने-जानेमें असुविधा होगी। उनके बाहर रुके रहनेमें भी उतना ही सम्मान है जितना भीतर प्रवेश करनेमें।

६. स्वयंसेवकों का पहला कर्त्तव्य इस बातका ध्यान रखना होना चाहिए कि दूसरे यात्रियोंका सामान न रौंदा जाये।

७. प्रदर्शनकारियोंको ट्रेन आनेके सूचित समयसे बहुत पहले ही स्टेशनके भीतर प्रवेश नहीं करना चाहिए।

८. गाड़ीके सामने यात्रियोंके लिए समुचित रास्ता छोड़ देना चाहिए।

९. अगर सम्भव हो तो अपने प्यारे नेताके गुजरनेके लिए प्रदर्शनकारियोंके ठीक बीचों-बीच एक और रास्ता होना चाहिए।

१०. स्वयंसेवकोंको श्रृंखलाबद्ध रूपमें खड़े नहीं रहना चाहिए। यह चीज अपमानजनक है।

११. प्रदर्शनकारियोंको तबतक एक स्थानपर खड़े रहना चाहिए जबतक सम्मानित नेता अपनी गाड़ीके पास न पहुँच जायें, या जबतक किसी प्राधिकृत स्वयंसेवक द्वारा पहलेसे ही निर्धारित किया गया संकेत उन्हें न मिल जाये।

१२. राष्ट्रीय नारे निश्चित कर लेने चाहिए; और नारे जैसे-तैसे, जब-तब या हमेशा नहीं लगाने चाहिए। उनका घोष ट्रेनके आनेपर सम्मानित नेताओंके अपनी

  1. देखिए "कुछ उदाहरण", २२-९-१९२० ।