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भाषण : मंगलौरमें

होगा जो वे अपनी झोपड़ीमें अपनी बहनोंके घर बैठकर काते हुए सूतसे तैयार करते हैं। सौ साल पहले जब हमारी रुचि दूषित नहीं हुई थी और हम टीमटामकी इन तमाम विदेशी चीजोंपर लुब्ध नहीं हुए थे, हमारा काम भारतके स्त्री-पुरुषों द्वारा देशमें तैयार किये कपड़ेसे चल जाता था। यदि मैं एक पलमें ही भारतकी रुचि बदलनेमें समर्थ होता और उसे पहले जैसी सादगीपर वापस ले जा सकता तो मैं आपको विश्वास दिला सकता हूँ कि देवता इस महान् त्यागपर हर्ष प्रकट करनेके लिए स्वर्गसे उतर आते। यह सब असहयोगके प्रथम चरणमें आ जाता है। मुझे आशा है कि जिस तरह मेरे लिए यह समझना आसान है उसी तरह आपके लिए भी यह समझना आसान होगा कि यदि भारत असहयोगके प्रथम चरणके कार्यक्रमको भली-भाँति पूरा कर ले तो उससे हमें मनोवांछित सुविधाएँ प्राप्त हो जायेंगी। इसलिए मैं फिलहाल आपसे असहयोगके अगले चरणोंके बारेमें कुछ नहीं कहूँगा। मैं चाहूँगा कि आप असहयोगके प्रथम चरणके कार्यक्रमोंपर अपना ध्यान एकाग्र करेंगे। आपने देखा होगा कि प्रथम चरणको सफल बनानेके लिए केवल दो बातोंकी जरूरत है: (१) अनिवार्य रूपसे असहयोगके लिए पूर्ण अहिंसाकी भावना, (२) केवल थोड़ा-सा आत्म-बलिदान। मेरी ईश्वरसे प्रार्थना है कि वह भारतके लोगोंको असहयोगके इस परीक्षणसे गुजरने योग्य साहस और बुद्धि प्रदान करे। आपने हमारा जो भव्य स्वागत किया है उसके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ। और आपने जिस अनुकरणीय धैर्य और शान्तिसे मेरी बात सुनी है उसके लिए भी मैं आपको धन्यवाद देता हूँ।

[अंग्रेजीसे]
फ्रीडम्स बैटल, पृष्ठ २३७-४५
 

१०६. भाषण : मंगलौरमें

१९ अगस्त, १९२०

अध्यक्ष महोदय और भाइयो,

भारतके इस सुन्दर उद्यानका भ्रमण करके मुझे और मेरे भाई शौकत अलीको सचमुच बड़ी खुशी हुई है। आपने आज तीसरे पहर हमारा जैसा भव्य स्वागत किया, और यह जो विशाल जनसमुदाय हमारे सामने उपस्थित है, यह अगर उस उद्देश्यके प्रति आपकी सहानुभूतिका द्योतक है जिसका प्रतिनिधित्व करनेका गौरव हमें प्राप्त है तो यह हमारे लिए बहुत प्रसन्नताकी बात है। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि हम इस लगातार यात्रापर इसलिए नहीं निकले हैं कि लोग हमारा स्वागत करें, हमें मानपत्र भेंट करें——चाहे इस स्वागत और मानपत्रके पीछे उनका कितना ही सौहार्द हो। हमने अपनी प्यारी मातृभूमिके एक छोरसे दूसरे छोरकी यात्रा इसलिए प्रारम्भ की है कि आज हमारे सामने जो स्थिति मौजूद है उससे हम आपको अवगत करायें। इस स्थितिको देशके सामने रखना और उसे अपना रास्ता आप ही चुननेको कहना हमारा सौभाग्य है, हमारा कर्त्तव्य है।