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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

व्यवस्था नहीं चाहता। मैं अराजकताकी स्थिति नहीं चाहता। आज सर्वत्र अव्यवस्था ही है, जिसे मेरे सामने गलत ढंगसे व्यवस्थाके रूपमें पेश किया जा रहा है। मैं इस अव्यवस्थामें से सच्ची व्यवस्थाको विकसित करना चाहता हूँ। जो व्यवस्था किसी अत्याचारी द्वारा सरकारके अत्याचारी तत्त्वोंको अपने हाथमें रखनेके लिए स्थापित की गई हो वह व्यवस्था, मैं कहूँगा, व्यवस्था नहीं बल्कि अव्यवस्था है। मैं अन्यायके स्थानपर न्यायको प्रतिष्ठित करना चाहता हूँ। इसलिए मैं आपसे अनाक्रामक असहयोग करनेको कहता हूँ। अगर हम इस शान्तिपूर्ण और अचूक सिद्धान्तके रहस्यको समझ लें तो आप देखेंगे कि जब कोई आपपर तलवार उठायेगा उस समय आप उसके विरुद्ध क्रोधका एक शब्द भी नहीं कहना चाहेंगे और डंडे या तलवारकी बात तो जाने दीजिए, आप उसपर अपनी अँगुली भी नहीं उठाना चाहेंगे।

साम्राज्यकी एक सेवा

शायद आप सोचते होंगे कि ये बातें मैंने क्रोधमें कही हैं, क्योंकि मैंने इस सरकारके तरीकोंको अनैतिक, अन्यायपूर्ण, पतनकारी और असत्यपूर्ण माना है। मैंने इन विशेषणोंका प्रयोग बहुत सोच-समझकर किया है। इन विशेषणोंका प्रयोग मैंने अपने सगे भाईके लिए किया है, जिनके साथ मैं पूरे १३ सालतक असहयोगकी लड़ाई चलाता रहा था। और आज यद्यपि उनकी स्मृति ही शेष रह गई है, फिर भी मैं आपको बताऊँ कि जब उनके कार्य अनैतिक आधारपर स्थित होते थे मैं उनसे कह देता था कि आप अन्याय कर रहे हैं। मैं उनसे कहा करता था कि आप सत्यके मार्गपर नहीं चलते। लेकिन उस समय मुझमें कोई क्रोध नहीं होता था। मैं उनसे यह परम सत्य इसीलिए कहता था कि मैं उन्हें प्यार करता था। उसी तरह मैं ब्रिटिश लोगोंसे कहता हूँ कि मैं उन्हें प्यार करता हूँ और उनके साथ सम्बन्ध बनाये रखना चाहता हूँ, लेकिन सुनिश्चित शर्तोंपर ही बनाये रखना चाहता हूँ। मैं अपने आत्मसम्मानको सुरक्षित रखना चाहता हूँ और उनके साथ पूरी तरह बराबरीका दर्जा चाहता हूँ। अगर मुझे ब्रिटिश जनताके साथ बराबरीका दर्जा प्राप्त नहीं हो सकता तो मैं ब्रिटेनसे कोई सम्बन्ध रखना नहीं चाहता। अगर ब्रिटिश लोगोंको यहाँसे चले जाने दूँ और उसके परिणामस्वरूप हमारे राष्ट्रीय जीवनमें कुछ कालके लिए अव्यवस्था और अराजकता आ जाये तो मुझे वह बरदाश्त होगी, लेकिन ब्रिटिश राष्ट्रके समान किसी महान् राष्ट्रके हाथों अन्याय पाना स्वीकार नहीं होगा। आप देखेंगे कि जिस दिन यह अध्याय समाप्त हो जायेगा उस दिन श्री मॉण्टेग्युके उत्तराधिकारी असहयोग करने और बहिष्कार——महाविभव युवराजके बहिष्कारका नहीं बल्कि उस सरकार द्वारा आयोजित उनकी यात्राका बहिष्कार जो इसके जरिये भारतकी गरदनपर अपनी पकड़ मजबूत करना चाहती है——का सुझाव देनेके लिए मेरी प्रशंसा करेंगे और यह मानेंगे कि इस प्रकार मैंने साम्राज्यकी जितनी सेवा की उतनी सेवा पहले कभी नहीं की थी। अगर मैं अकेला भी होऊँ, अगर मैं राष्ट्रको युवराजकी यात्राके प्रति किसी प्रकारका उत्साह न दिखानेके लिए राजी न भी कर पाऊँ, तो भी मैं अपनी समस्त शक्तिसे इस यात्राका बहिष्कार करूँगा। आज मैं इसी उद्देश्यसे आपके सामने