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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कार्य किया। अपनी ओरसे उनके प्रति धन्यवाद प्रकट करते हुए मैंने दो शब्द कहे। [मैंने उनसे कहा,] गुजरातियों में जो दोष माने जाते हों वे उन्हें वापस गुजरात में ही भेज देने चाहिए और जो गुण हों उनका ही विकास करना चाहिए। ऐसा करके गुजराती, गुजरात और हिन्दुस्तान दोनोंकी ही शोभा बढ़ायेंगे। अपने व्यवहारमें मनुष्यको अनेक धर्मसंकटोंका सामना करना पड़ता है, उस समय सच्चे मित्रकी जरूरत होती है। वैसे मित्रके रूपमें [उन्हें] आनन्दशंकरभाई मिले हैं। मैंने कामना व्यक्त की कि उनकी उपस्थितिका के पूरा लाभ उठायेंगे। काशीसे दिल्ली होते हुए, वहाँ माननीय श्रीनिवास शास्त्रीसे मुलाकात करने के बाद श्रीमती सरलादेवीको[१] लेकर में २३ तारीखको आश्रममें पहुँचा हूँ।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २९-२-१९२०

४६. हिन्दू-मुस्लिम एकता

हिन्दू-मुसलमानोंके बीच इस समय जितनी एकता है उतनी इस युगमें पहले कभी नहीं रही, अगर ऐसा कहें तो कोई अतिशयोक्ति न होगी। हम सबकी कामना है कि यह एकता अविचल बनी रहे। लेकिन इस इच्छाकी पूर्तिके लिए हम जबतक प्रयत्न न करेंगे तबतक यह एकता निभ नहीं सकती, उसमें वृद्धि नहीं हो सकती।

यह एकता यदि स्वार्थसे प्रेरित होकर की गई है तो इसमें सन्देह नहीं कि स्वार्थ सधने के बाद यह नहीं निभ सकती। इसलिए एकता बढ़ने के कारणोंकी जाँच करना जरूरी है।

इसके बारे में कितने हो मित्रोंने मुझसे सवाल पूछे हैं; मैंने उन्हें जो जवाब दिया है उसे ही यदि यहाँ लिख दूँ तो इसको लेकर जो गलतफहमी है वह सम्भवत: कुछ हदतक दूर हो जायेगी।

खिलाफतके प्रश्नमें में प्रमुख भाग लेता हूँ सो ठीक नहीं है, ऐसी कुछ लोगोंकी मान्यता है। उनमें से एक पक्ष यह कहता है कि हिन्दू-मुसलमानोंमें जो गहरी दुश्मनी है वह तो जा नहीं सकती। इस प्रश्नका उत्तर में इस स्थानपर नहीं देना चाहता। सिर्फ इतना ही कहूँगा कि यदि हम ऐसे प्रश्नोंको उठायेंगे तो अनेक समस्याओंको सुलझाना असम्भव ही हो जायेगा। मनुष्यके प्रयत्नसे सब-कुछ हो सकता है, ऐसा कहा जाता है और होता है, यह भी हम देखते हैं। तो फिर इस कामको असम्भव मान लेनेका तनिक भी कारण नहीं है।

दूसरा पक्ष कहता है कि खिलाफतका प्रश्न भले ही मुसलमानोंके दीनका प्रश्न हो, लेकिन वे न्यायपर नहीं है। टर्कीके साथ हमारा क्या सम्बन्ध ? टर्कीके अन्यायकी सीमा नहीं है। उसके अत्याचारपूर्ण शासनके पुन: प्रतिष्ठित किये जाने में संसारको क्या

लाभ? ऐसे अनेक प्रश्न पूछे गये हैं। सबका जवाब देनेका प्रयत्न कभी और करूँगा।

  1. सरलादेवी चौधरानी।