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भूमिका


प्रस्तुत खण्डमें फरवरी १९२० से जून १९२० तक की पाँच महीनोंकी सामग्री संगृहीत है। यह अवधि भारतमें गांधीजीके असहयोग आन्दोलनके अरुणोदयकी अवधि है। खिलाफतके प्रश्नको लेकर भारतीय मुसलमानोंके मनमें उत्पन्न चिन्ताकी ओर मित्रराष्ट्रोंने कोई ध्यान नहीं दिया; और फलस्वरूप मॉण्टेग्यु-चैम्सफोर्ड सुधारोंके प्रति देशमें असन्तोष का बीजारोपण हुआ। मई १९२० में हंटर कमेटीकी रिपोर्ट प्रकाशित हुई और उसीके साथ भारत सरकारका खरीता और भारत मन्त्रीकी स्वीकृति भी। इनके प्रकाशनने मानो आगपर घोका काम किया। गांधीजीने देशको पहले यह सलाह दी थी कि प्रस्तुत सुधारोंपर रचनात्मक दृष्टिकोण अपनाकर उनपर अमल करना चाहिए; किन्तु हंटर कमेटीके निर्णय, सरकारके खरीते तथा निर्णय और उनपर भारत मन्त्रीकी सहमतिके प्रकाशनके बाद उन्हें यह कहनेपर बाध्य होना पड़ा कि देश उस सरकारको सहयोग न दे जिसने न्यायके प्रति ऐसी उपेक्षा दिखाई है। गांधीजी द्वारा अपने कथनमें यह परिवर्तन साधारण नहीं माना जा सकता। वास्तवमें यह परिवर्तन साम्राज्यके प्रति गांधीजीके अबतक चले आ रहे रुखसे एकदम अलग था। अभीतक गांधीजी इस ब्रिटिश दावेको मानते चले आ रहे थे कि साम्राज्यका कारबार कुछ नैतिक और राजनैतिक सिद्धान्तोंके अनुसार चलता है; और भारतको साम्राज्यमें बने रहने के कारण काफी लाभ हुआ है। इस बार गांधीजीका यह विश्वास बिलकुल हिल गया और उन्होंने देशसे अपील की कि वह अपने भीतर इतनी नैतिक शक्ति पैदा करे जिसके बलपर या तो साम्राज्यको सुधारा जा सके या फिर उसे समाप्त किया जा सके। गांधीजीके नेतृत्वका मुख्य सिद्धान्त ही यहाँसे बदल गया।

देश जिस मनःस्थिति में था उसमें प्रत्यक्ष कार्रवाई करनेकी अपील, लोगोंको बहुत पसन्द आई और स्पष्ट हो गया कि राष्ट्र गांधीजीके नेतृत्वमें चलनेके लिए बिलकुल तैयार है। खिलाफत आन्दोलनमें मुसलमान नेताओंने भी गांधीजीकी सहायता और सलाहका स्वागत किया। गांधीजी कार्यक्रमके नैतिक पहलूपर जितना जोर देते थे, वह खिलाफतके मुसलमान नेताओंकी समझमें नहीं आता था; तथापि उन्होंने तत्कालीन परिस्थितियोंमें तदनुसार चलनेका वचन दिया। वाइसरायसे १९२०में जिस खिलाफत शिष्टमण्डलने भेंट की थी, गांधीजी उससे भी सम्बन्धित थे। उस समय उन्होंने असहयोग आन्दोलनकी योजनापर भी विचार किया था। मौलाना अबुल कलाम आजादने दूसरे खिलाफत सम्मेलनके अवसरपर २९ फरवरी, १९२० को कलकत्तामें अपने अध्यक्षीय भाषणमें मुसलमानोंसे असहयोग आन्दोलनको अपनानेके लिए कहा और ७ मार्चको गांधीजीने समाचारपत्रोंमें वक्तव्य देकर आन्दोलनका कार्यक्रम स्पष्ट किया। इसी वर्षके अप्रैल और मई महीनोंमें एक शिष्टमण्डल लेकर इंग्लैंड जानेकी बात उठी और कहा गया कि गांधीजी ही शिष्टमण्डलका नेतृत्व करें। गांधीजीने कहा कि यदि मुस्लिम नेतागण उक्त प्रस्तावपर दृढ़ बने रहें तो वे नेतृत्व करनेकी बात सोच सकते हैं। इस