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भाषण: अहमदाबादमें

आज मेरा शरीर बिलकुल थक गया है इसलिए मैं लेटा हुआ हूँ। थोड़ा आराम करनेसे वह बहुत-कुछ ठीक हो जायेगा। जहाँ तुमने एक सुपुत्रकी तरह मेरी सेवा की है वहाँ मुझे भला तुमसे असन्तोष कैसे हो सकता है ? मैं तो तुम्हारे होनेकी वजहसे अपने पत्र-व्यवहारके[१] सम्बन्धमें बिलकुल निश्चिन्त हो इधर-उधर घूमता था। तुम न होते तो देवदास बीमार पड़ जाता अथवा मुझे भी बहुत सारे काम अधूरे छोड़ देने पड़ते...विशेष सोमवारको।

[गुजरातीसे]
बापुनी प्रसादी

४३. भाषण: अहमदाबादमें

२७ फरवरी, १९२०

आप सब लोग शायद जानते होंगे कि अभी कुछ असेंसे मैं अपंग-सा हूँ, इसलिए इस समय मैं आपके सामने बैठे-बैठे भाषण दूँगा। मुझे उम्मीद है, इसके लिए आप सब लोग मुझे माफ करेंगे।

मैं देखता हूँ कि आजकी सभाके कार्यक्रममें भाषणकर्ताओंकी सूचीमें मेरा नाम भी दिया गया है। मुझे बहन सरलादेवीको तथा अध्यक्ष महोदयको[२] धन्यवाद देनेका काम सौंपा गया है। आज इस सभामें जिस बहनने आपके सम्मुख भाषण दिया है, मैं उन्हें तथा अध्यक्ष महोदयको अच्छी तरहसे जानता हूँ; इसलिए मुझे जो कार्य सौंपा गया है, उसे करने में मुझे खुशी हो रही है।

मैं स्वयं तो भिखारी हूँ; अपनी भिक्षामें मैं विशेष रूपसे बहनोंकी खोज में रहता हूँ। मुझे पुरुष तो हर स्थानपर मिल रहे हैं। लेकिन मैं बहनोंको प्राप्त करने में विशेष प्रयत्न कर रहा हूँ क्योंकि मैं मानता हूँ कि जबतक देशकी बहनें अपने भाइयोंको आशीर्वाद नहीं देतीं तबतक भारतकी उन्नति असम्भव है। मुझे खास करके अहमदाबादमें एक ऐसी बहन मिल गई है। बम्बई, मद्रास आदि स्थानोंपर भी कोई-न-कोई बहन मिल गई है। पंजाबमें मुझे सरलादेवीजी मिल गई हैं। इनसे मेरा प्रथम परिचय १९१० में हुआ था और उसके बाद हरद्वारमें मुझे इस दम्पतीके दर्शन हुए थे। सरलादेवीने मुझे पंजाब आनेका निमन्त्रण दिया। मैंने उसे स्वीकार तो कर लिया, लेकिन मुझे घबराहट हुई। उन्होंने जब मुझे यह निमन्त्रण दिया था उस समय वे वियोगिनी थीं। इसलिए मैं सोच में पड़ गया कि वियोगिनीका आतिथ्य कैसे स्वीकार करूं? लेकिन दूसरोंके दुःखमें शामिल होनेकी बातको में अपना सौभाग्य मानता हूँ और इसलिए मैं

  1. मथुरादासने १९१९ में बम्बईमें गांधीजीके सचिवके रूपमें कार्य किया और जनवरी-फरवरी १९२० में जब गांधीजीने पंजाबका दौरा किया उस समय वे उनके साथ थे।
  2. सर रमणभाई महीपतराम नीलकण्ठ।