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पत्र: बम्बई उच्च न्यायालयके पंजीयकको

काम करना सीखेंगे। मुझे मालूम है, मिल-मालिक [भी] यही चाहते हैं कि संघ बने तो ठीक हो। आजकल किसीको कोई और किसीको कोई, इस तरह सबको अपनी-अपनी कठिनाइयों और शिकायतोंका समाधान अलग-अलग करना पड़ता है। यदि संघ हो तो उसके अधिकारियोंसे मिलकर सब-कुछ सुचारु रूपसे किया जा सकता है। इस तरह इसमें दोनों पक्षोंका हित है, इसलिए आप अच्छी तरहसे सोच-समझकर यह काम कीजिएगा।

[गजरातीसे]
नवजीवन, २९-२-१९२०

४१. पत्र: बम्बई उच्च न्यायालयके पंजीयकको[१]

सत्याग्रह आश्रम
साबरमती
२७ फरवरी, १९२०

पंजीयक,

उच्च न्यायालय,
बम्बई

प्रिय महोदय,

मैं इस पत्रके साथ एक वक्तव्य भेज रहा हूँ, जो ३ मार्चको न्यायालयमें पढ़ना या दाखिल करना चाहता हूँ। यह तारीख मेरे विरुद्ध जारी किये गये कैफियत-तलबी आदेश[२] (रूल निसी) की सुनवाईके लिए निश्चित की गई है। साथमें श्री महादेव देसाईका वक्तव्य भी भेज रहा हूँ।

आपका विश्वस्त,

[संलग्न]

[गांधीजीका वक्तव्य]

मेरे विरुद्ध जारी किये गये कैफियत-तलबी आदेशके सम्बन्धमें निवेदन है कि:

उपर्युक्त आदेश जारी किये जाने से पहले मेरे तथा इस न्यायालयके पंजीयकके बीच कुछ पत्र-व्यवहार हुआ था। मैंने ११ दिसम्बरको पंजीयकके नाम एक पत्र[३] लिखा, जो

  1. इस पत्र तथा दोनों संलग्न वक्तव्योंका मसविदा गांधीजीकी लिखावटमें है।
  2. यह आदेश गांधीजी और महादेवभाईके खिलाफ न्यायालयकी मानहानिके आरोपमें की गई अदालती कार्रवाईके सिलसिलेमें जारी किया गया था। कारण यह था कि गांधीजी द्वारा सम्पादित और महादेव भाई द्वारा प्रकाशित यंग इंडियामें सम्पादकीय टिप्पणीके साथ एक पत्र छाप दिया गया था, जो अहमदाबादके जिला जज बी० सी० कैनेडीने बम्बई उच्च न्यायालयके पंजीयकके नाम लिखा था। देखिए "क्या यह न्यायालयकी मानहानि थी?", १०-३-१९२० भी।
  3. पत्रके लिए देखिए खण्ड १६, पृष्ठ ३५०-५२।