पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 17.pdf/८४

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५६
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

तो उसमें दोनोंकी अवनति है। इसलिए आप अपनी स्त्रियोंको बाहर काम करनेके लिए मत भेजिए, उनके शीलकी रक्षा कीजिए। यदि आपमें मर्दानगी हो तो कुछ ऐसा प्रबन्ध करना आपका काम है जिससे कोई व्यक्ति आपकी स्त्रियोंपर बुरी निगाह न डाल सके। आज विवश होकर मजदूरोंको अपनी इच्छाके विरुद्ध अपनी स्त्रियों और बच्चोंसे काम करवाना पड़ता है। यह बात भी सच है कि इससे छुटकारा पाने के लिए उन्हें अधिक वेतन मिलना चाहिए। यदि संघ बनाया जाये, तो उसकी मार्फत यह सब सरलतासे हो सकता है।

इसलिए ऐसे संघकी स्थापना करते समय आपको विचारपूर्वक तीन बातोंका निश्चय करना है:

१. संघके नियमोंकी जाँच कर लें।

२. मिल-मालिक ऐसी सत्ताका उपभोग न करें जिससे वे मजदूरोंपर हावी हो जायें।

३. आपको संघमें शामिल होनेके लिए प्रवेश-शुल्क देना होगा और फिर हर महीने कुछ चन्दा देना पड़ेगा।

तत्पश्चात् आपको इस बातपर विचार करना चाहिए कि यदि आपको अधिक वेतन मिलने लगे तो आप उसका क्या करेंगे? इस अतिरिक्त धनको यदि मैं शराबखानेमें खर्च कर दूँ, चाय पीऊँ, पकौड़ियाँ खाऊँ तो इसकी अपेक्षा उसका न मिलना ही बेहतर है। लेकिन यदि इस अतिरिक्त धनसे मैं अपनी स्त्रीको राहत दूँ, उसे शिक्षा हूँ, उसके लिए शिक्षिका रखू, बच्चोंको लिखाऊँ-पढ़ाऊँ, अपने वस्त्रोंको साफ करूँ, सील और गन्दगीसे भरे घरसे अच्छे घरमें रहने जाऊँ तो इन पैसोंका मिलना अच्छा है। और यह सब हम संघ बनाकर कर सकते हों तो संघकी स्थापना करना ठीक है। लेकिन इन सबके सम्बन्धमें अभी मेरे मनमें सन्देह है और मैं आपसे बार-बार कहता हूँ कि यदि हम यह सब भूल जायेंगे तो आपकी सेवाकी आकांक्षा करनेवाले हम और--दोनों पाप योनिमें पड़ेंगे।

एक समय ऐसा था जब सब लोगोंमें धार्मिक-वृत्ति थी। इन सारी प्रवृत्तियोंमें शामिल होकर और हाथ बँटाकर मैं यह देखनेका प्रयत्न कर रहा हूँ कि क्या इस रास्तेपर चलकर भी देशके लोगोंमें प्राचीन धार्मिक वृत्तिको फिरसे जाग्रत किया जा सकता है? मेरी दृढ़ मान्यता है कि यदि हममें यह जाग्रति आ जाये तो इस कठिन समयमें हम लोग बच जायेंगे, नहीं तो हमारा मरण निश्चित है। यह धार्मिक वृत्ति कोई बहुत कठिन चीज नहीं है, यह बिलकुल सादी वस्तु है और सब लोग आसानीसे इसका विकास कर सकते हैं। मैं आपसे कानमें कहे देता हूँ कि जो स्वेच्छाचारी है, स्वच्छन्द वृत्तिका है, संयमका पालन नहीं करता वह धर्मसे दूर है। जो किसीका अहित नहीं करता, किसीका खोटा पैसा न लेता है और न देता है, वह धर्मको समझता है। हम शराबी, लुच्चे और लफंगे हों तो हमारा जीना और कमाना सब बेकार है; यदि हम सच्चे, अच्छे, सरल, विवेकी और धार्मिकवृत्तिवाले बनें तो हमारा जीवन सार्थक है। हमारा संव भले ही बने; उससे हममें मेल होगा, एकता बढ़ेगी, हम विधिपूर्वक