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भाषण: अहमदाबादके मिल-मजदूरोंकी सभामें

कड़ी निगाह रखें वरन् इन लोगोंने आपके नामपर क्या-क्या किया, आपके नामसे कहाँ-कहाँ हस्ताक्षर किये--इन सब बातोंकी भी निगरानी रखें।

दूसरी एक और बात मुझे आपसे कहनी है। आपमें जो लोग यह मानते हों कि मिल-मालिकोंके विरुद्ध लड़ने, उन्हें दबानेकी खातिर हम इस संघको स्थापना कर रहे हैं अथवा हम इन संघोंका ऐसा उपयोग कर सकेंगे, उन्हें मैं चेतावनी देता हूँ कि वे लोग इस संघमें शामिल होने का विचार छोड़ दें। मिल-मालिकोंको दबानेका अथवा उन्हें नुकसान पहुँचानेका कोई कार्य मैंने इस जिन्दगीमें नहीं किया है और न ही मेरे हाथों यह होनेवाला है। लेकिन अगर वे मजदूरोंको दबाते है तो उससे मजदूरोंको मुक्त करवाने के लिए मैं अपनी गर्दन कटवानेको तैयार हूँ। पूज्य अनसूयाबेन और भाई शंकरलालको[१] मिल-मालिकोंके प्रति तनिक भी द्वेषभाव नहीं है। वे सिर्फ मजदूरोंकी सेवा करना चाहते हैं। यह बात मैं अच्छी तरहसे जानता हूँ। इसीलिए जब-जब मुझे अवसर मिलता है तब-तब मैं उनके इस काममें सहयोग देता हूँ तथा इसी कारण उन्हें भी समय-समयपर यही कहता हूँ कि यदि आप सचमुच मजदूरोंकी सेवा करना चाहते हों तो आपको मजदूरों और मिल-मालिकों, दोनोंके हितोंकी कामना करनी चाहिए। मिल-मालिकोंको सेवाकी जरूरत नहीं है। मजदूर गरीब, मासूम और भोले हैं, उनको सेवाकी जरूरत है। संघ बनाकर [हमें] मिल-मालिकोंको दबाना नहीं है, सिर्फ मजदूरोंकी ही रक्षा करनी है और इतना करने का हमें अवश्य ही अधिकार है।

आज यदि मजदूरोंको अपने बच्चों और स्त्रियोंको कारखानोंमें काम करने के लिए भेजना पड़ता हो तो इसे बन्द करवाना हमारा फर्ज है। मजदूरोंके बच्चोंको ३-४ रुपयेकी अधिक आमदनीकी खातिर अपनी शिक्षाका नुकसान करके मजदूरी करनेके लिए जाना पड़ता है, यह कदापि नहीं होना चाहिए। मजदूरी बालकोंके लिए नहीं है, स्त्रीके लिए भी कारखानेकी मजदूरी नहीं है। उसके लिए घरमें काफी काम है, उसे बच्चोंका पालन-पोषण करने की ओर ध्यान देना चाहिए; पति जब थका-माँदा घर आये तब उसे शान्ति प्रदान करना, उसकी सेवा करना, वह क्रोधित हो तो उसे शान्त करना और घरमें बैठे-बैठे कोई और काम हो तो उसे करना--ये सब उसके काम है। यदि हम चाहते हों कि हमारा गृह-जीवन सुन्दर हो, मधुर हो तो हमें यह करना ही चाहिए। पुरुषोंकी तरह बाहर जाकर काम करना स्त्रियोंके लिए [उचित] नहीं है। अगर हम अपनी स्त्रियोको कारखानोंमें भेजेंगे तो हमारी गृहस्थीको कौन चलायेगा। स्त्रियाँ घर छोड़कर बाहर काम करने जायें तो हमारा गृहस्थ जीवन नष्ट हो जायेगा तथा वर्ण-संकरकी परिस्थिति पैदा होगी। जो लोग यूरोपका उदाहरण पेश करते हैं और यह पूछते हैं कि वहाँ किस तरह हजारों स्त्रियाँ पुरुषों के काम करती है तथा स्त्री-पुरुष इकठे काम करते हैं, उनको मेरा उत्तर यह है कि 'यूरोपकी मुझे कोई परवाह नहीं है।' सामाजिक रीति-रिवाजोंका मुझे जो थोड़ा-बहुत सूक्ष्म ज्ञान हुआ है, उसके आधारपर मेरा यह दृढ़ विश्वास है कि यदि स्त्री और पुरुष दोनों साथ मजदूरी करने जाते हैं

  1. शंकरलाल बैंकर, अहमदाबादके एक सामाजिक कार्यकर्ता तथा मजदूर नेता; वे यंग इंडिया और नवजीवन, बॉम्बे क्रॉनिकल तथा वम्बईकी सत्याग्रह सभासे भी सम्बन्धित रहे हैं।