सभीके बीच इन्हें सहन करता हूँ--वैसे ही जैसे मैं उनसे अपेक्षा रखता हूँ कि इन चीजोंसे मेरा परहेज रखना उन्हें भले ही पसन्द न हो, लेकिन वे इसे सहन अवश्य करें। हिन्दुओं और मुसलमानोंके बीचके सारे झगड़ेकी जड़ यही बात है कि दोनों एक-दूसरेपर अपने विचार लादना चाहते हैं।
४०. भाषण : अहमदाबादके मिल-मजदूरोंकी सभामें[१]
२५ फरवरी, १९२०
आज हम यहाँ जो इकट्ठे हुए है, उसका उद्देश्य यह है कि मजदूर अपने संघकी स्थापना करें और उससे सम्बन्धित नियमों और प्रस्तावोंको पास करें।
यह काम करने से पहले मुझे आपको कह देना चाहिए कि हम आज जो संगठन खड़ा करने जा रहे हैं, उसका क्या उद्देश्य है, यह अच्छी तरहसे समझ लिया जाना चाहिए। दो अथवा तीन वर्ष पूर्व पूज्य अनसूयाबेनने[२] बुनकर संघकी स्थापना करनेका विचार किया और इस दिशामें कुछ काम भी शुरू किया। लेकिन उस समय मेरी सलाह यह थी कि यह बहुत जोखिमका काम है और मजदूरोंकी सेवा करनेके हेतु यदि हम इस कामको हाथमें लें और बादमें पूरी तरहसे निभा न सकें तो इससे [हमारे हाथों] मजदूरोंकी सेवाके बदले उनका बहुत ज्यादा नुकसान हो सकता है। मैं यह भी नहीं कहता कि आज मुझे इस बातका भय नहीं है। लेकिन मैं देख रहा हूँ, हिन्दुस्तानकी हालत कुछ हदतक इतनी बदलती जा रही है कि हमें अपनी स्थितिका सूक्ष्म रूपसे अध्ययन और पर्यवेक्षण करनेकी तथा उसे संभालने के लिए ऐसे संगठनोंकी आवश्यकता है। मैं आपको जो समझाना चाहता हूँ वह इतना ही है कि अपने संगठनका संचालन करनेके लिए यदि हमारे पास ईमानदार और कार्यको अच्छी तरह समझनेवाले व्यक्ति न हुए तो पाँवों आप कुल्हाड़ी मारेंगे। ऐसे लोग हमारे पास न हों तो हमें संघ आदिकी स्थापना करनेके जंजालमें नहीं पड़ना चाहिए। दो वर्ष पहले मैंने यही कहा था और आज भी यही कहता हूँ।
आजकल हिन्दुस्तानमें, मजदूर-वर्गमें अनेक तरहकी हलचलें जारी हैं। लड़ाईके[३] बादसे ब्रिटिश और यूरोपीय राज्यों द्वारा शासित सब देशोंमें इतनी खलबली मची हुई है कि यदि मजदूर लोग अपने हितोंकी ओर ध्यान न देंगे, उनकी रक्षा न करेंगे तो वे कुचले जायेंगे। आज जो लोग एक राष्ट्र के रूपमें खड़े नहीं हो सकते, अन्य राष्ट्रोंके साथ अपने कदम नहीं मिला सकते, वे टिक नहीं सकते। आज राज्यतन्त्र ही ऐसा हो