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३७. पत्र: एस्थर फैरिंगको

आश्रम

रविवार [२२ फरवरी, १९२०][१]

रानी बिटिया,

आज वापस लौटनेपर मुझे तुम्हारे तीन स्नेह-पत्र मेरी प्रतीक्षा करते हुए मिले। तुम्हारे पत्रों में प्रसन्नता, शान्तिमय समर्पण तथा प्रभुमें विश्वासकी ध्वनि देखकर मुझे आनन्द हुआ। प्रभुमें विश्वास तो तुममें हमेशा ही रहा है। परन्तु इन पत्रोंमें वह विश्वास अधिक गहराईको पहुँचा हुआ प्रकट हो रहा है। ईश्वर करे, तुम्हारी यह आस्था उत्तरोत्तर दृढ़तर होती जाये और अन्तमें तुम सब सन्देहोंसे मुक्त हो जाओ, और इस तरह प्रत्येक परिस्थितिमें तुम प्रफुल्लित रहने लगो। कारण, हम जैसे-जैसे जीवनयात्रामें आगे बढ़ते हैं, वैसे-वैसे हमेशा ही ऐसी समस्याएँ उपस्थित होती रहती हैं, जिनमें निर्णय करना आवश्यक होता है, और वे सबसे कठिन तब हो जाती हैं जब शैतानकी आवाज ईश्वरीय आवाजसे मिलती-जुलती प्रतीत होती है। केवल अखण्ड विश्वास, पूर्ण शुचिता और चरम विनयशीलता ही हमें सही निर्णय करने में समर्थ बनाते हैं।

उम्मीद है कि मैं आश्रममें कमसे-कम एक सप्ताह रहूँगा। उसके पश्चात् पखवारेभर एकान्त-लाभ तथा विश्राम करनेकी आशा करता हूँ।

निश्चय ही आज रातको सोने जाते समय मुझे तुम्हारी बहुत याद आयेगी।

सस्नेह,

तुम्हारा,

बापू

[पुनश्चः]

तुम्हें यह जानकर हर्ष होगा कि एस० के पिताने तुम्हारी घड़ी लौटा दी है। इसका महत्त्व वापस कर देने में नहीं, वरन् लौटाने के पीछे जो इरादा है, उसमें है। डेनमार्क जानेके लिए जब तुम इधर आओ तब घड़ी ले लेना।

[अंग्रेजीसे]
माई डियर चाइल्ड
  1. मूल पाठसे स्पष्ट है कि यह पत्र २२ फरवरी, १९२० को, जिस दिन गांधीजी आश्रम पधारे थे, लिखा गया था।
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