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३६. भाषण: विद्यार्थियोंकी सभामें[१]

२१ फरवरी, १९२०

श्री गांधी हिन्वीमें बोले[२] और उन्होंने अपने भाषणमें तुलसीदासका उल्लेख अनेक बार किया। उन्होंने विद्यार्थियोंको पूरी ईमानदारी बरतनेका उपदेश देते हुए कहा कि इसे केवल नीतिके रूपमें ही नहीं अपनाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि पंजाबमें मार्शल लॉके कारण विद्यार्थियोंने बड़ी मुसीबतें उठाई, परन्तु वे भी सर्वथा निर्दोष नहीं कहे जा सकते। विद्यार्थियोंको राजनीतिका अध्ययन करना चाहिए परन्तु उसमें सक्रिय भाग नहीं लेना चाहिए। विद्यार्थियोंका आदर्श संयम होना चाहिए न कि स्वेच्छाचारिता। उन्होंने भरतके जीवनसे संयमके दृष्टान्त प्रस्तुत किये और कहा कि यदि यहाँके विद्यार्थी संयमके प्राचीन आदर्शपर चलनेमें असफल रहे तो विश्वविद्यालयके अस्तित्वका औचित्य नहीं रहेगा और इसके निर्माताओंको प्रोत्साहन नहीं प्राप्त होगा। में गुजरात कालेज [अहमदाबाद] के लगभग प्रत्येक विद्यार्थीको जानता हूँ, और उनमें से कुछको अपने अध्यापकोंमें ही खामियां दिखाई देती हैं। मैं स्वीकार करता हूँ कि अध्यापकोंने भौतिकतावादी प्रणालीके अन्तर्गत शिक्षा ग्रहण की है, परन्तु विद्यार्थियोंको उचित है कि अपने गुरुओंके प्रति श्रद्धाभाव रखना सीखें, उनमें दोष न निकालें। उन्होंने पंडित मालवीयको सेवाओंको प्रशंसा करते हुए कहा कि उनका जीवन अध्यापकों और विद्यार्थियोंके लिए दृष्टान्त-रूप है।

[अंग्रेजीसे]
लीडर, २३-२-१९२०
  1. हिन्दू विश्वविद्यालय, बनारसमें छात्रोंकी यह सभा विश्वविद्यालयफे उप-कुलपतिकी अध्यक्षतामें हुई थी।
  2. मूल हिन्दी भाषण उपलब्ध नहीं है।