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जलियाँवाला बाग

चीजके रूपमें ग्रहण किया। हममें से कुछ लोगोंने बड़ी मूर्खतापूर्ण भूलें कों और उनका परिणाम निर्दोष लोगोंको भोगना पड़ा। भविष्यमें हमें ऐसी भूलोंसे बचनेकी कोशिश करनी चाहिए, लेकिन अपने सारे प्रयत्नोंके बावजूद, सम्भव है, हम सभी लोगोंको सद्बुद्धिपूर्ण रास्तेपर न ला सकें। अत: हमें ऐसे अवसरके लिए तैयार रहना चाहिए जब निर्दोष लोगोंको फिर इसी तरहके कष्ट सहने पड़ सकते हैं, और इसके लिए तैयार रहने का तरीका होगा अब देशको यह बता देना कि उन निरपराध मारे गये लोगों को तथा उनके परिजनोंको कभी भुलाया नहीं जायेगा, बल्कि उन निर्दोष मृत लोगोंकी स्मृतिको पवित्र थातीके रूप में संजोकर रखा जायेगा और वे अपने परिवारों में अपने पीछे जिन लोगोंको छोड़ गये हैं, उन्हें आवश्यकता पड़नेपर राष्ट्रसे यह अपेक्षा करनेका अधिकार होगा कि वह उनकी जीविकाका प्रबन्ध करे। यह इस स्मारकका प्रमुख और प्रथम अभिप्राय है। और फिर क्या उस अवसरपर मुसलमानोंका रक्त हिन्दुओंके रक्तके साथ मिलकर नहीं बहा? इसी तरह क्या सिखोंका खून सनातनियों और आर्यसमाजियोंके खूनके साथ मिलकर नहीं बहा? इस स्मारकको हिन्दु-मस्लिम ऐक्यकी उपलब्धिके सतत और सच्चे प्रयासका एक राष्ट्रीय प्रतीक होना चाहिए।

लेकिन अभी आपत्ति करनेवालोंकी आपत्तिका उत्तर देना तो शेष ही है। क्या यह स्मारक कटुता और दुर्भावनाको भी स्थायी नहीं बना देगा? यह बात तो न्यासियोंपर निर्भर करेगी। और अगर मैं उन्हें जानता हूँ तो मैं कहूँगा उनका ऐसा कोई इरादा नहीं है। मैं यह भी जानता हूँ कि वहाँ उपस्थित विशाल जनसमुदायका भी इरादा यह नहीं था। मैं यह नहीं कहना चाहता कि उन लोगोंके मनमें कोई कटुता थी ही नहीं। कटुता थी और वह कोई दबे-छिपे रूपमें भी नहीं थी। लेकिन स्मारक बनाने के विचारके पीछे कोई कटुता थी ही नहीं। जिसने यह पागलपनका काम किया उसे और उसके पागलपनको लोग भूलना चाहते हैं और इसे भूलने में उन्हें मदद देनी चाहिए। यदि हम भी जनरल डायर जैसे ही गैरजिम्मेदार हों और हमें वैसा अवसर मिले तो सम्भव है हम भी वही करें जो जनरल डायरने किया। गलती करना मानव-स्वभावका अंग है, लेकिन अगर हम सबसे गलती होने की सम्भावना है और यदि हम अपने दुष्कृत्योंके लिए दण्डित किये जाने और बार-बार उनका स्मरण दिलाये जाने के बजाय क्षमा कर दिया जाना अधिक पसन्द करेंगे तो गलतियोंको क्षमा कर देना भी मानव-स्वभावका उतना ही अभिन्न अंग है। लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं कि हम जनरल डायरकी बरखास्तगीकी माँग न करें। किसी पागल आदमीको ऐसे स्थानपर नहीं रखा जा सकता जहाँसे वह अपने पड़ोसियोंको हानि पहुँचा सके। लेकिन जैसे किसी पागल आदमीके प्रति हमारे मन में दुर्भावना नहीं होती वैसे ही जनरल डायरके प्रति भी ऐसी कोई भावना नहीं रखनी चाहिए। अत: मैं हर तरहकी कटुता और दुर्भावनाको स्मारकसे अलग रखकर इसे एक पुनीत स्मृति समझूँगा और इस बागको एक ऐसा तीर्थस्थान मानूँगा जिसके दर्शनार्थ, जाति, वर्ग, या धर्मका भेद माने बिना, सबको आना चाहिए। मैं अंग्रेजोंसे अनुरोध करूँगा कि वे हमारी भावनाको समझें। मैं उन्हें आमन्त्रित करता हूँ कि [दिसम्बर १९१९को] शाही घोषणामें निहित भावनाका अनुसरण करते हुए वे भी