३२. उत्कलकी पुकार
'उड़िया' की[१] अपेक्षा 'उत्कल' कहीं ज्यादा अच्छा शब्द है। उत्कल यूनियन कान्फरेंसके भूतपूर्व मन्त्री तथा उत्कल पीपुल्स एसोसिएशन, कटकके[२] अध्यक्ष माननीय श्री ब्रजसुन्दर दासने एक छपा हुआ परिपत्र प्रचारित किया है। वे अपने इस पत्रमें कहते हैं:
उड़िया लोग चार प्रशासनोंके अधीन कर दिये गये हैं--बिहार, मद्रास, बंगाल और मध्यप्रान्त। वे हर जगह अल्पसंख्यक है। इस हालतमें एक स्वतन्त्र इकाईके रूपमें उनका विकास असम्भव हो गया है। वे गत पन्द्रह वर्षोंसे प्रशासनिक एकीकरणके लिए संघर्ष कर रहे हैं। चूंकि वे विनयशील हैं और अपनी बात मनवाने के लिए आन्दोलन वगैरह नहीं करते, इसलिए उनके बार-बार प्रार्थना करने के बावजूद अधिकारियोंने उनकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया है। भारतकी प्रगतिमें उसके किसी भी हिस्सेकी प्रगतिकी अवगणना नहीं की जा सकती। नया भारत राष्ट्र एक प्राचीन जातिकी राखपर खड़ा नहीं किया जा सकता।
हमें माननीय बाबू ब्रजसुन्दर दास द्वारा प्रयुक्त भाषापर कोई विवाद छेड़नेकी जरूरत नहीं है। यह शिकायत उचित है और भाषाके आधारपर पुनर्गठनका एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न खड़ा करती है। यह शानदार जाति यदि बिना किसी उचित कारणके चार भागोंमें बाँट दी जाती है तो वह कभी स्वाभाविक प्रगति नहीं कर सकती, और प्रगति करनेका हक तो उसे भी है ही। हमें भरोसा है कि जनता उड़िया आन्दोलनको सहानुभूतिपूर्ण भावसे देखेगी और समझेगी।
३३. जलियाँवाला बाग
इस बागको खरीदने के सम्बन्धमें एक दुर्भाग्यपूर्ण बाधा आ गई थी।[३] लेकिन माननीय पंडित मदनमोहन मालवीय, संन्यासी स्वामी श्री श्रद्धानन्द और स्थानीय नेताओंके प्रयत्नोंके परिणामस्वरूप अब यह बाग राष्ट्रको सम्पत्ति बन गया है। हाँ, शर्त यह है कि इसका क्रय-मूल्य इस माहकी ६ तारीखसे लेकर तीन महीने के भीतर चुका दिया जाये। यह मूल्य है ५,३६,००० रुपये और यह राशि इस निर्धारित समयमें ही एकत्र कर लेनी है।