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परिशिष्ट ६
वाइसरायके नाम मुसलमान नेताओंका आवेदनपत्र[१]

बम्बई
२२ जून १९२०

महोदय,

हम हस्ताक्षरकर्त्तागण सर्वाधिक सुन्नी मुसलमानोंके मतका प्रतिनिधित्व करनेका दावा रखते हैं। हमने टर्कीकी सन्धि शर्तोंको बहुत सावधानी और ध्यानसे पढ़ा है और हम उन्हें मुसलमानोंकी भावनाओंपर सीधी चोट करनेवाली मानते हैं। वे सुन्नियोंपर डाले गये (धार्मिक) उत्तरदायित्वका उल्लंघन करती हैं और सभी मुसलमानोंकी भावनाओंपर चोट करती हैं। वे ब्रिटिश मन्त्रियोंके वायदोंके विपरीत हैं। यह मानी हुई बात है कि उन्हीं वादोंके आधारपर युद्धके दौरान भारतमें मुसलमान रंगरूटोंकी भरती सम्भव हो पाई थी। हमारा विचार है कि ब्रिटिश साम्राज्य खिलाफतका प्रतिनिधित्व करने वाले टर्की साम्राज्य के साथ, जो विश्व में सबसे बड़ी मुसलमानी ताकत है, इस तरहका बरताव नहीं कर सकता जैसा कदाचित किसी पराजित शत्रुके प्रति किया जा सकता है। वास्तव में हमारा विचार है कि कुछ मामलोंमें अन्य राष्ट्रोंकी अपेक्षा टर्कीके साथ अधिक बुरा व्यवहार किया गया है। हमारा सादर निवेदन है कि ब्रिटिश सरकार उसके साथ व्यवहार करते समय भारतीय मुसलमानोंकी भावनाओं का, जहाँतक वे अन्यायपूर्ण या अनुचित नहीं हैं, आदर करनेके लिए बाध्य है। हमारी रायमें भारतीय मुसलमानोंने जो स्थिति अपनाई है वह साफ है। वे इस विचारको सहन नहीं कर सकते कि जर्मनीका साथ देनेके दण्डस्वरूप सुल्तानकी राजसत्तापर प्रतिकूल प्रभाव पड़े। सुल्तानने किन परिस्थितियों में जर्मनीका साथ दिया उनकी जाँच-पड़ताल करना यहाँ आवश्यक नहीं। परन्तु हमारी कदापि यह इच्छा नहीं है कि कोई ऐसी माँग की जाये जो आत्म-निर्णयके सिद्धान्त में बाधा डाले। हमारी यह इच्छा भी नहीं है कि कोई भी कुशासन, जैसा कि टर्कीके बारेमें कहा जाता है, कायम रखा जाये। यूरोप में हमारे प्रतिनिधियोंने आर्मीनिया में तुर्की सिपाहियों द्वारा की गई तथाकथित नृशंसताकी जाँच-पड़ताल के लिए एक स्वतन्त्र जाँच आयोगकी मांग की है। टर्की और उसके साम्राज्यको दण्डस्वरूप छिन्न-भिन्न कर उसे नीचा दिखाया जाये इस बातकी हम उपेक्षा नहीं कर सकते। इसलिए हम परमश्रेष्ठसे तथा आपकी सरकारसे अनुरोध करेंगे कि आप महामहिमके मन्त्रियोंसे संधि शर्तोंपर पुनर्विचारके लिए कहें और उन्हें बतायें कि ऐसा करनेपर आपका हित भारतके लोगोंके हितसे एकरूप बन जायेगा। हम यह सुझाव इसलिए

  1. ३, जून १९२० को इलाहाबाद में हुई केन्द्रीय खिलाफत समितिको बैठकमें असहयोगके बारेमें जो फैसला हुआ उसके अनुसार यह आवेदनपत्र भेजा गया। इस पत्रपर भारत भरके ९० सुन्नी मुसलमानोंने हस्ताक्षर किये थे जिनमें याकूब हसन, मजहरुल हक, मौलाना अब्दुल बारी, हसरत मोहानी, शौकत अली, डा॰ किचलू और मियाँ मुहम्मद छोटानी भी थे।