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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

छोड़ दिया जाये तो महामहिमकी सरकारकी इच्छा है कि मैं आपको स्पष्ट शब्दों में बता दूँ कि सैनिक और असैनिक, ब्रिटिश और भारतीय, दोनों वर्गोंके जिन अधिकारियों और व्यक्तियोंपर भारतको, वह जिस राजनिष्ठा और व्यवस्थाप्रियताके लिए विख्यात है, उसे पुनः प्राप्त करने में मदद देनेकी भारी जिम्मेदारी आ पड़ी थी, उनकी आपने जो सराहना की है उससे महामहिमकी सरकार पूरी तरह सहमत है। इस प्रकार महामहिमकी ब्रिटिश और भारतीय फौजोंके अफसरों और जवानों तथा पुलिस और असैनिक कर्मचारियोंपर—जो एक लम्बे युद्धकी कठिनाइयाँ झेलकर अभी-अभी निकले थे और जिन्हें उन्होंने यद्यपि साहस और धैर्यके साथ झेला था फिर भी जिससे वे थक तो गये ही थे—जो भार आ पड़ा था वह बहुत जबरदस्त था। ये लोग अपने कर्त्तव्य-पालन में अपने विभागोंकी महान् परम्पराओंके अनुरूप ही साबित हुए।

इसके साथ ही सम्राट्की सरकार इन उपद्रवोंमें हुई प्राणहानिके लिए, आपकी सरकारके समान ही, गहरा दुःख व्यक्त करना चाहती है और जिन लोगोंको उन घटनाओंके कारण अपने सगे-सम्बन्धियोंका वियोग सहना पड़ा है, उनके साथ गहरी सहानुभूति प्रकट करना चाहती है।

११. अन्तमें मुझे आपसे यह कहते हुए हर्ष होता है कि जिस ढंगसे आपने अपने महान उत्तरदायित्वका निर्वाह किया है उसके लिए सम्राट्की सरकार निजी तौरपर आपके प्रति अपनेको आभारी अनुभव करती है। भारतके गवर्नर-जनरलकी जिम्मेदारियाँ भी बहुत बड़ी होती हैं, परन्तु विश्वव्यापी परिस्थितियोंके फलस्वरूप आपके कन्धोंपर चिन्ताका ऐसा बोझ आ पड़ा है जैसा आपके पूर्ववर्ती किसी गवर्नर जनरल पर यदाकदा ही पड़ा होगा। सम्राट्की सरकार चाहती है कि आपको आश्वस्त करानेके लिए आपको यह बता दिया जाये कि आपके विवेकमें उसका पूरा-पूरा विश्वास बना हुआ है, क्योंकि उसे भरोसा है कि आपके विवेकके पीछे सदा एक ही बातकी प्रेरणा रही है। कि जिन लोगोंका शासन आपके हाथों में सौंपा गया है, उनका कल्याण हो।

आपका,
(हस्ताक्षर) एडविन एस॰ मॉण्टेग्यु

[अंग्रेजीसे]