पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 17.pdf/६५२

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
६२०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जाने चाहिए, और लोगोंके ऐसे दलोंको—जो एयरमैनको उसकी समझके अनुसार वास्तवमें हिंसात्मक अपराध करते दिखें—आतंकित करनेके लिए केवल परिमित मात्रामें ही बमवर्षा करने व मशीन गनसे गोलियाँ चलानेकी अनुमति देनी चाहिए। सरकार यथासम्भव शीघ्र इस प्रकारके आदेश जारी कराये। साम्राज्य सरकार बड़े दुःखके साथ लॉर्ड इंटरकी समितिके इस विचारसे सहमति प्रकट करती है कि इस अवसरपर गुजरांवाला जानेवाले विमानोंको जो निर्देश दिये गये, वे साफ और सुनिश्चित नहीं थे।

८. सर माइकेल ओ'डायर—पहले के अनुच्छेदोंमें जो कुछ कहा जा चुका है, उससे यह स्पष्ट है कि इस जाँचसे उठनेवाले बहुतेरे मुद्दोंपर महामहिमकी सरकार सर माइकेल ओ'डायरको आलोचनासे मुक्त नहीं मानती। उदाहरणके लिए, उन्होंने अपर्याप्त जानकारीके ही आधारपर जलियाँवाला बागमें ब्रिग्रेडियर जनरल डायरके कामकी जो मुक्तभाव से तारीफ कर दी उसका अनुमोदन वह नहीं कर सकती। वह इस बातको दुर्भाग्यपूर्ण समझती है कि उस समय वे अपने मनकी इस प्रथम प्रतिक्रिया पर दृढ़ नहीं रहे कि यह एक ऐसा मामला है जिससे एक असैनिक अधिकारीके नाते वर्तमान परिस्थितियों में उनका कोई सीधा सरोकार नहीं है और इसलिए उन्हें इसके गुण-दोष के सम्बन्ध में अभी कुछ नहीं कहना चाहिए। जिन उद्देश्योंने स्पष्टतः उन्हें दूसरा रुख अख्तियार करनेको और बादमें पूरी जानकारी मिल जानेपर उस रुखपर डटे रहने की प्रेरणा दी, वे अपेक्षाकृत कम टीकास्पद हैं।

दूसरी बात यह है कि कुछ मुकदमोंके सम्बन्धमें फौजी कानूनी प्रक्रिया लागू करनेपर जो राय पहले व्यक्त की जा चुकी है उसे उस हदतक माइकेल ओ'डायर पर भी लागू समझना चाहिए, जिस हदतक वे इस कामके लिए व्यक्तिगत रूपसे उत्तरदायी थे। जहाँतक आम तौरपर फौजी कानूनके अमलका सम्बन्ध है, जाहिर है कि सर माइकेल ओ'डायरने ऐसी व्यवस्था सोच रखी थी कि जिससे असैनिक अधिकारी सैनिक प्रशासन के मामले में भली-भाँति राय दे सकते थे, और फौजी कानून संहितामें, जिसपर आपकी सरकार विचार कर रही है, इसका पूरा ध्यान रखा जाये कि भविष्य में यह योजना अमल में लाई जायेगी।

पंजाब में सर माइकेल ओ'डायरके शासनके सामान्य प्रश्नसे अभी महामहिमकी सरकारका कोई प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं है। वह मानती है कि भारतमें यह बहुत बड़े विवादका विषय बन गया है और बहुत बड़े पैमानेपर लोगोंके मनमें यह विश्वास बैठा दिया गया है कि उनके नेतृत्वमें पंजाब सरकार शिक्षित वर्गकी विरोधी हो गई थी और न केवल गैर-कानूनी वरन् कानून सम्मत और वैधानिक राजनैतिक आन्दोलनको भी दबानेको कृतनिश्चय थी। सरकार हृदयसे मानती है कि इस वातावरणको दूर किया जा सकेगा, फिर भी उसे यह पूरी तरह मालूम है कि जो परिस्थितियाँ उनके सामने थीं, वे कैसी विषम थीं । षड्यन्त्र, दुश्मनोंके एजेंटोंकी गतिविधियाँ, रहन-सहनके खर्च में वृद्धि, और भारतीय फौजके लिए बहुत बड़ी संख्या में रंगरूटोंकी भरती, जिसकी साम्राज्यको आवश्यकताओंको देखते हुए बड़ी जरूरत थी—ये सारी बातें उनके पूरे कार्यकालमें बराबर चिन्ताका कारण बनी रहीं, हालांकि सौभाग्यसे इन बातोंमें पूरे