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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जब ऐसा ही कोई अध्यादेश जरूरी हो तो उसे तैयार करनेमें उसके अमलकी उचित सीमा निर्दिष्ट करनेका ध्यान रखना जरूरी था।

६. फौजी कानूनका अमल:—एक सवाल है जिसके बारेमें इस निष्कर्षपर न पहुँचना कठिन है कि लॉर्ड इंटरकी समितिके अधिकांश लोग अपनी बात ऐसे शब्दों में कहने में असफल रहे हैं जिनका कहा जाना, दुर्भाग्यसे तथ्योंको देखते हुए औचित्यपूर्ण ही नहीं वरन् आवश्यक है। अपनी रिपोर्टके अध्याय १२ के अंश १६-२५ में अधिकांश सदस्योंने साधारणतया उस 'उग्र' रूपके सम्बन्धमें जिसे फौजी कानूनने अख्तियार कर लिया था और अनुचित कठोरताके कुछ विशेष उदाहरणों और बेजा सजाओं या हुक्मोंपर विचार प्रकट किये हैं। समितिने जिन उदाहरणोंको अपनी दोनों रिपोर्टों में विस्तारके साथ गिनाया है न तो उनका फिरसे जिक्र करना आवश्यक है, और न दण्ड देनेके खयालसे उन अलग-अलग अधिकारियोंकी, जो इन आदेशोंके लिए उत्तरदायी थे, परन्तु अन्य प्रकारसे जिनका आचरण शायद निष्कलंक और सराहनीय तक रहा हो, सदोषता निर्धारित करनेका प्रयत्न करनेसे कोई लाभ निकलेगा। परन्तु सम्राट्की सरकार इन आदेशों और सजाओंके बारेमें अपनी तीव्र असहमति व्यक्त करती है। और मुझसे यह काम आपपर छोड़ देनेके लिए कहा गया है कि जो अधिकारी उन बेजा हरकतोंके लिए उत्तरदायी हैं उनके कामोंके प्रति सरकारकी सख्त नाराजगी दिखाई जाये या अन्य किसी प्रकारसे जैसा आपको आवश्यक जान पड़े अपनी अप्रसन्नता प्रकट की जाये। समितिके द्वारा पेश किये गये उदाहरणोंसे इस कथन के लिए पर्याप्त आधार मिलता है कि पंजाब में मार्शल लॉका प्रशासन ऐसी कुभावनाके कारण दूषित हो गया था जिसने साधारणतया तो नहीं परन्तु दुर्भाग्य से कई बार ऐसे दण्डों और आदेशोंको लागू करनेको प्रेरित किया जिनका इरादा चाहे यह न रहा हो परन्तु जिनका परिणाम तो यही निकलनेवाला था कि—भारतीयोंको जातिके रूपमें अपमानित किया जाये, उन्हें नाहक ऐसी तकलीफें दी जायें जो प्रायः अन्यायकी श्रेणीमें आ जाती हो, शालीनता तथा मानवताके उन मापदण्डोंकी अवहेलना हो जिनकी अपेक्षा अपने शासकोंसे करनेका अधिकार न केवल भारतवासियोंको है अपितु साधारणतः समस्त सभ्य संसारके लोगोंको होता है। खेदका विषय है कि अधिकांश लोगोंके व्यवहारके बावजूद पंजाब में कुछ ऐसे अधिकारी रहे, जो लगता है, इस तथ्यको भूल गये थे कि वे फौजी कानूनको एक ऐसे देशके निवासियोंको कुचलनेके लिए लागू नहीं कर रहे हैं जो युद्धके परिणामस्वरूप कुछ समय के लिए छीना गया शत्रु देश है, बल्कि ऐसे देश में जिसमें सम्राट्के प्रति पूर्ण राजभक्ति रखनेवाली जनता रहती है उन लोगों से शीघ्रतापूर्वक निपटनेके लिए कर रहे हैं जिन्होंने उस राजभक्त जनताकी शान्ति भंग कर दी है। यह विश्वास करना कठिन है कि यदि असैनिक सत्ता मार्शल लाॅके प्रशासन से अधिक सम्पर्क बनाये रह पाती तो ऐसा होता, और सबसे ज्यादा महत्वकी बात तो यह है कि यदि दुर्भाग्यसे भविष्य में फौजी कानूनका सहारा लेनेकी जरूरत फिर पड़े तो कोई ऐसा तरीका जरूर निकाला जाये जिससे इस प्रकारका सम्पर्क प्रभावशाली ढंगसे स्थापित हो सके।