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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


किसी विद्रोही देशमें फौजी कानूनपर अमल करनेवाले फौजी कमाण्डरपर बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है; किन्तु जब उसे ऐसी जनतापर उसका अमल करना पड़ता है जो वफादार है और जो स्वयं भी संरक्षणके लिए उसी सरकारकी ओर देखती है जिसकी सेवा वह कर रहा है, तब उसका यह उत्तरदायित्व अपरिमित रूपसे बढ़ जाता है। यदि सख्त नियम निर्धारित करके कार्य और निर्णयकी उसकी स्वतन्त्रता सीमित कर दी जाये अथवा संकटकाल बीत जानेपर उसने जो किया हो उसकी कड़ी आलोचना की जाये तो जनताकी जिस सुरक्षाको बनाये रखना उसका उत्तरदायित्व है, वह सुरक्षा ही खतरे में पड़ जायेगी। जो परिस्थिति तत्त्वतः सैनिक है वह उदार दृष्टिकोण और सभी सम्भावनाओंकी समुचित परिकल्पनापर आधारित सैनिक व्यवस्थाकी आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर ही निपटाई जानी चाहिए। व्यवहारके कुछ ऐसे मापदण्ड हैं, जिनकी उपेक्षा कोई भी सभ्य सरकार नहीं कर सकती और सम्राट्की सरकार उनकी रक्षा के लिए कृतसंकल्प है। व्यवहारके उन मानदण्डोंकी समुचित रक्षा करते हुए फौजी कानूनपर अमल करनेवाला अधिकारी अपने प्राप्त कर्त्तव्यको उस तरीके से करनेको स्वतन्त्र होगा और अवश्य होना चाहिए जिसे उसकी निर्णयबुद्धि सर्वाधिक ठीक और प्रभावशाली बताये। और फिर काम पूरा हो चुकने के बाद वह अपने वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा पूर्ण समर्थनका भरोसा रख सकता है।

ब्रिगेडियर जनरल डायरने उद्देश्यकी ईमानदारी और कर्त्तव्यकी अपनी धारणाके प्रति अडिग लगन दिखाई, इसमें कोई सन्देह नहीं है। परन्तु जिन परिस्थितियोंमें वे थे उनमें महामहिमकी सरकार अपने कमीशन प्राप्त अफसरोंसे जिस कर्त्तव्यकी आशा करती है और जिसके पालनपर उन्हें बाध्य करना चाहती है उससे उनकी अपने कर्त्तव्यकी धारणा इतनी भिन्न है कि उन्हें जिस पद और दर्जेपर वे हैं उसका उत्तरदायित्व सौंपने के योग्य मानना असम्भव है। आपने मुझे सूचना दी है कि कमांडर-इन-चीफने ब्रिगेडियर जनरल डायरको निर्देश दिया है कि वे ब्रिगेड कमांडरके पद से इस्तीफा दे दें और उन्हें सूचित किया है कि वे भारत में किसी पदपर नियुक्त नहीं रह सकेंगे और आपने भी इस निर्देशसे सहमति प्रकट कर दी है। में इस निर्णयको सही मानता हूँ। मामले से सम्बन्धित तथ्य फौजी परिषद् (आर्मी कौंसिल) के सामने भेज दिये गये हैं।

४. फौजी कानून घोषित करने और जारी रखनेका औचित्य:—हंटर समितिने बहुमत से यह निर्णय किया है कि फौजी कानूनकी घोषणा और पंजाबके जिन जिलोंमें वह लागू किया गया उनमें साधारण अदालतोंका आंशिक रूपसे लोप कर दिया जाना सही था। (अध्याय ११, अंश १७) उसके इस निर्णयपर आपत्ति करनेके कोई कारण नहीं हैं। फौजी कानूनकी अवधि बढ़ा दिये जानेके सम्बन्धमें यह स्पष्ट है कि उसे लागू करने में यह तय करनेका उत्तरदायित्व भी निहित है कि कब उसे समाप्त किया जाये। साधारणतया यह स्पष्ट है कि फौजी कानून जितने समयतक सार्वजनिक सुरक्षाके लिए जरूरी हो, उससे ज्यादा समयतक न रहे; परन्तु इसके आगे फिर कोई ठोस कसौटी फैसला करनेके लिए नहीं है; और बादमें हुई घटनाओंके आधारपर टीका