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परिशिष्ट

ब्रिगेडियर जनरल डायरके विरुद्ध जो कुछ कहा जा सकता है, उसमें सबसे गम्भीर बात तो उनके सामने उपस्थित परिस्थितियों में अपने कर्त्तव्य के विषय में उनकी वह धारणा है जिसे उन्होंने खुद ही अपने बयान में प्रस्तुत किया है।

उन्होंने जिस सिद्धान्तको अपने कार्यका आधार बनाया महामहिमकी सरकार उसका तीव्रता से खण्डन करती है। उनके अपने वक्तव्य के अनुसार, यदि उनके पास और फौज होती, और यदि घटनास्थलपर सशस्त्र गाड़ियोंका प्रयोग सम्भव होता तो उनका यह कार्य और भी भयानक रूप धारण कर सकता था। सम्राट्की सरकारने भारतमें सामान्यतया अधिकारियोंके सामने तथा ब्रिगेडियर जनरल डायरके सामने विशेष रूप से १३ अप्रैलको जो गम्भीर परिस्थिति थी, उसे नजरअन्दाज नहीं किया है और उन परिस्थितियों में ब्रिगेडियर जनरल डायरने जिस उत्तरदायित्वका अनुभव किया, उसकी गम्भीरताका भी उसे पूरा खयाल है। सम्राट्की सरकारके विचारसे यूरोपीयोंकी जान तथा ब्रिटिश और भारतीय फौजोंकी सुरक्षाको, समितिकी रिपोर्ट से जितना जाहिर होता है, उससे कहीं ज्यादा खतरा था। तीन दिन पहले अमृतसरमें ही बड़े बर्बर किस्मकी हत्याएँ और आगजनी की घटनाएँ हो चुकी थीं और शहर लगभग उस समय भी भीड़के हाथों में था। चारों ओरके देहातोंसे भी हर घंटे उसी तरहकी घटनाओं और संचार साधनों पर हमलोंको खबरें प्राप्त हो रही थीं और इन खबरों में (संचार-साधनोंपर हमलों में सफलता के कारण) जो कमी थी उसकी पूर्ति अफवाहोंसे हो रही थी। इन अफवाहों की सचाईंकी जाँचका उपाय नहीं था और इसी तरह उनपर अविश्वास करनेका भी कारण नहीं था। इस उत्तरदायित्वको अपनी थोड़ी-सी फौजसे निभानेकी चिन्तामें स्वाभाविक था कि ब्रिगेडियर जनरल डायरके मनपर पंजाबकी आम हालतका ध्यान बना रहा। और उन्हें उस हालतको नजरमें रखकर अपनी योजना बनानेका हक था; परन्तु एक ऐसी निःशस्त्र भीड़को इतना जबर्दस्त दण्ड देनेका हक उन्हें नहीं था, जिसने उस समयतक हिंसाका कोई भी कार्य नहीं किया था; और जिसने ताकतसे उनका मुकाबला करनेकी कोई कोशिश नहीं की और जिसमें अनेक लोग इस बाततक से अनभिज्ञ थे कि उनके वहाँ इकट्ठा होनेसे जनरल साहबके आदेशका उल्लंघन हो रहा है।

ब्रिगेडियर जनरल डायरने अप्रैल १३ को जो कुछ किया उसपर अपना निर्णय देते हुए उनके एक अन्य आदेशपर भी विचार करना जरूरी है। यह आदेश उन्होंने इसके ६ दिन बाद जारी किया था और लोगोंमें उसका नाम 'रेंगनेका आदेश' पड़ गया है। यहाँपर इस आदेशका स्वरूप अथवा जिन परिस्थितियोंमें यह निकाला गया था उन्हें दुहराना अनावश्यक है। यदि इस आदेशका पालन उन लोगोंसे दण्डरूप में कराया जाता जो वास्तव में उस अपराधके अपराधी थे, जिसकी दुष्टता और कायरताका भान करानेके लिए उसकी रचना की गई थी तो भी वह उचित न होता किन्तु उसका पालन ऐसे लोगोंसे कराया गया जिनका उस अपराधसे कोई सम्बन्ध नहीं था, और इसमें उद्देश्य यह था कि लोगोंको इस तरह अपमानित करके अमृतसरकी जनताके सामने उसके कुछ सदस्योंके द्वारा किये गये अपराधकी गम्भीरता प्रदर्शित की जाये यह बात सभ्य शासन-तन्त्रके प्रत्येक नियमके प्रतिकूल है।