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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सैनिकवृत्ति दोनोंने मुझे गोलीबारके लिए प्रेरित किया। और इस विषय में मेरे मनमें भी द्वन्द्व नहीं था। में बराबर यह सोच रहा था कि कल यह भीड़ 'डंडा फौज'[१] का रूप ले लेगी। इसलिए मैंने गोली चलाई और भीड़के तितर-बितर हो जानेतक उसे जारी रखा। मैं समझता हूँ कि आवश्यक नैतिक और व्यापक प्रभाव उत्पन्न करनेके लिए—और अपने कार्यका औचित्य सिद्ध करनेके लिए ऐसा प्रभाव उत्पन्न करना मेरा कर्त्तव्य था—कमसे कम जितना गोलीबार आवश्यक था उतना ही किया गया। यदि और फौज सुलभ होती तो हताहतोंकी संख्या और भी अधिक होती। उस समय प्रश्न केवल भीड़ को तितर-बितर करनेका नहीं था, बल्कि सैनिक दृष्टिसे न केवल उन लोगों पर, जो मौजूद थे वरन् मुख्यतया समस्त पंजाब में पर्याप्त नैतिक असर पैदा करनेका था। जरूरत से ज्यादा सख्ती का तो कोई सवाल ही नहीं उठता।"

असैनिक सत्ता की मदद के लिए जब कभी सैनिक कार्यवाहीकी जरूरत पड़ती है। तो सदा महामहिमकी सरकारकी नीति आवश्यकताके अनुसार कमसे कम शक्तिका प्रयोग करते के सिद्धान्त से परिचालित रही है। महामहिमकी सरकारका निश्चय है कि जब भी दुर्भाग्य से परिस्थितिवश ब्रिटिश साम्राज्य में असैनिक उपद्रवको सैनिक बलसे दबाना जरूरी हो जाये तो नीतिका मुख्य अंग यही सिद्धान्त रहेगा।

हमें खेदपूर्वक किन्तु निश्चयपूर्वक यह कहना ही पड़ेगा कि जलियाँवाला बाग में ब्रिगेडियर जनरल डायरका कार्य इस सिद्धान्तके सर्वथा प्रतिकूल था। उनके सामने काम इतना ही था कि वे एक बड़ी किन्तु स्पष्ट ही निःशस्त्र सभाको, जो उनके आदेशकी अवज्ञा करके इकट्ठी हो गई थी, यदि जरूरी हो तो बल प्रयोगसे तितर-बितर कर देते। सम्भव है कि अपने अधीन सैनिक बल, भीड़की संख्या और शहरके रहनेवालोंकी सामान्य मनःस्थिति और रुखको देखते हुए, उन्हें थोड़ा गोलीबार करने और कुछको मारे बिना इसमें पूरी सफलता पानेकी सम्भावना दिखाई न दी हो। परन्तु यह निश्चित है कि जितना बल प्रयोग करनेकी आवश्यकता है उसका निश्चय करनेका उन्होंने कोई प्रयत्न नहीं किया, और वास्तवमें जो बल प्रयोग उन्होंने किया, वह भीड़को तितर-बितर करनेके लिए जरूरी बलसे बहुत ज्यादा था और उससे नाहक ही लोगोंकी जानें गईं और उन्हें शोचनीय कष्ट हुए। इतना ही नहीं उनकी भूल इससे भी बड़ी थी। सभा में निःसन्देह ऐसे अनेक लोग थे, और उनमें से कई तो आसपास के गाँवोंसे शहरमें आये थे, जो उनकी घोषणा अथवा सभामें शरीक होनेके खतरेसे अनभिज्ञ थे। घोषणा शहरके एक भाग में ही प्रचारित हुई थी और यह भाग सभास्थल से थोड़ा दूर था। गोली चलाने के पूर्व कोई चेतावनी नहीं दी गई थी। शहरकी हालत, मौसमकी गर्मी और शहरमें आनेके बादसे जनरल डायरकी इस फौजपर पड़नेवाले दबावको ध्यान में रखते हुए पहले मुद्देपर बहुत जोर देना अनुचित होगा परन्तु गोली चलानेसे पहले चेतावनी न देना अक्षम्य है। इसके सिवा, उन्होंने आहत व्यक्तियोंको डाक्टरी मदद पहुँचानेका भी कोई प्रयत्न नहीं किया जो स्पष्ट ही कर्त्तव्यकी एक बड़ी त्रुटि थी। परन्तु

  1. लाहौर में उन दिनों दंगाइयोंने अपना यही नाम रखा था।