पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 17.pdf/६४२

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
६१०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

घटनाके सम्बन्धमें अपनी जवाबदेही कम करने या अपने कार्य या उद्देश्यपर अनुकूल रंग चढ़ानेका कोई प्रयत्न नहीं किया है। उसके आचरणका औचित्य सिद्ध करनेके लिए केवल यही कहा जा सकता है कि उसके सामने तथा उसके अधिकारक्षेत्रमें आनेवाले इलाकेमे जो स्थिति थी उसके अनुसार सैनिक कार्रवाईकी आवश्यकता थी। जनरल डायरके सामने जो परिस्थिति थी उसमें किसी भी अधिकारीको अवश्य ईमानदारी और मुस्तैदी से काम करना चाहिए परन्तु उसमें मामलेके मुताबिक मानवीय भावना भी होनी चाहिए। हम मानते हैं कि महान् संकटके समय सम्भव है कि अधिकारी अस्थायी तौरपर निर्णयकी अपनी शक्तिका सन्तुलन खो बैठे, इसलिए उतनी छूट इस मामले में भी होनी चाहिए। हम यह भी मानते हैं कि जनरल डायरके कार्यका अन्तिम परिणाम चाहे कितना ही घातक क्यों न रहा हो किन्तु उसका फल यह हुआ कि उपद्रवी शक्तियाँ तुरन्त निरुत्साहित हो गईं। हमने अपने उस प्रस्तावको भी नजरअन्दाज नहीं किया है जिसमें हमने उपद्रव दवानेके कष्टसाध्य कर्त्तव्यमें व्यस्त अधिकारियोंको पूरी स्वीकृति और सहायता देनेका वचन दिया था। तथापि इन सभी तथ्योंपर सावधानीके साथ विचार करते हुए हम इसके अलावा और किसी निष्कर्षपर नहीं पहुँच सकते हैं कि जलियाँवाला बागमें जनरल डायरने मामलेके लिए जितनी आवश्यकता थी उससे अधिक तथा जितनी कोई भी समझदार व्यक्ति करना जरूरी समझ सकता था उससे भी अधिक कार्रवाई की। और उन्होंने उतनी भी मानवीय भावना नहीं दिखाई जितनी की उक्त मामलेमें दिखाई जा सकती थी। हम खेदसहित इस निर्णयपर पहुँचे हैं क्योंकि हम जनरल डायरकी उन विशिष्ट सेवाओंको जो उन्होंने सैनिककी हैसियतसे की हैं या उस राहतको जो उन्होंने हालके अफगान युद्धमें थाल स्थित सैन्य दलको बड़ी बहादुरी के साथ पहुँचाई थी, भूल नहीं सकते। फिर भी हमें निर्देश देना होगा कि उपयुक्त निर्णय परमश्रेष्ठ प्रधान सेनापतिको भेज दिया जाये और उनसे प्रार्थना की जाये कि वे उक्त मामलेमें मुनासिब कार्रवाई करें।

४५. हमने पीछे कई बार यूरोपीयों तथा भारतीयोंकी उपद्रवोंमें हुई प्राणहानिके प्रति बहुत खेद व्यक्त किया है और जो इन दुःखद घटनाओंके शिकार हुए हैं उनके शोक-संतप्त कुटुम्बियोंके प्रति सहानुभूति व्यक्त की है। हम एक बार फिर उन सबके प्रति जिन्हें इस प्रकार कष्ट उठाना पड़ा है, खेद और सहानुभूति व्यक्त करना चाहते हैं। उन लोगोंको, जो उसके कानूनन हकदार थे मुआवजा दिया गया है—यद्यपि सही तो यह है कि उनकी हानिकी ठीक पूर्ति तो हो नहीं सकती—और जो सरकारी कर्मचारी इन उपद्रवों में मारे गये हैं उनके आश्रितोंके लिए पर्याप्त व्यवस्था या तो कर दी गई है या कर दी जायेगी। पंजाब सरकारसे उन लोगोंके मामलोंपर विचार करनेके लिए भी कहा जायेगा जो अपने भरण-पोषणकर्त्ताओंके जलियाँवाला बागमें मारे जाने या उन्हें स्थायी रूप से चोट पहुँचने के कारण संकटमें पड़ गये हैं और यदि ऐसे लोगोंको स्थानीय दान-संगठनों से सहायता मिली हो तो जरूरत पड़नेपर उन्हें और सहायता दी जाये।

४६. अब हमने समिति के सभी निष्कर्षोंका सर्वेक्षण कर लिया है। हमारी रायमें अप्रैल १९१९की घटनाओंसे एक सबसे अधिक महत्वपूर्ण शिक्षा ग्रहण करना शेष है।