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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


४२. भारत सरकार फौजी कानूनके अन्तर्गत अदालतोंकी कार्यप्रणालीपर चर्चा समाप्त करनेसे पूर्व, स्थानीय सरकारकी उस कार्रवाईका उल्लेख कर देना चाहती है जो फौजी कानून हटा लिये जाने और व्यवस्था कायम हो जानेपर इन अदालतों द्वारा दी गई सजाओं का असर मिटाने के लिए की गई थी। जून और नवम्बर महीनोंके बीच ६३४ मामलोंमें सजाएँ कम कर दी गईं, ४५ मृत्युदण्ड कारावासमें परिवर्तित कर दिये गये और ४३ व्यक्तियोंको रिहा कर दिया गया। नवम्बर में समरी अदालतों द्वारा दी गई, उन सजाओंपर जो अभी समाप्त नहीं हुई थी, पुनर्विचारके लिए उच्च न्यायालयके न्यायाधीशोंकी नियुक्ति की गई। इसके अतिरिक्त भारत सरकार द्वारा भेजे जानेवाले ऐसे अन्य मामलोंपर भी विचार करनेके लिए न्यायाधीशोंसे कहा गया जिनकी सुनवाई फौजी कानून आयोग में हो चुकी थी। दिसम्बर में पुनर्विचार करनेवाले न्यायाधीशोंकी सिफारिशोंके परिणामस्वरूप, समरी अदालतों द्वारा दण्डित ९२ व्यक्ति रिहा कर दिये गये। आगे इसी तरह के और भी कदम उठाये जाते, लेकिन इसी महीनेकी २३को आम माफी के सन्देश सहित शाही घोषणा प्रकाशित की गई और उसके अन्तर्गत ६५७ बन्दियों पर अनुकम्पा की गई और उन्हें रिहा कर दिया गया। फरवरी तक उपद्रवोंके सिलसिले में दण्डित १,७७९ व्यक्तियोंमें से जिनपर उपद्रवोंके सिलसिले में अभियोग चलाया गया था, केवल ९६ ऐसे घोर अपराधी ही जेलमें रह गये थे जिन्होंने हिंसाके गम्भीर अपराधों में हिस्सा लिया था और तबसे यह संख्या भी घटकर ८८ रह गई है। सारे पंजाब में लेफ्टिनेंट गवर्नरकी उदारता और सहानुभूतिपूर्ण सिफारिशोंके अनुसार ही राजनीतिक बन्दियोंपर अनुग्रह किया गया। उन्होंने प्रान्तमें शान्तिपूर्ण वातावरण पुनः स्थापित करनेके लिए जो प्रयत्न किये उन्हें भारत सरकारने आभार सहित स्वीकार किया।

४३. अब भारत सरकारके लिए साम्राज्यके उन सैनिक अथवा असैनिक अधिकारियोंके आचरणका उचित मूल्यांकन करना शेष रह जाता है जो इन उपद्रवोंसे प्रभावित क्षेत्रों में तैनात किये गये थे। इसके अलावा समितिकी रिपोर्टको अन्तिम रूपसे निपटानेसे पहले सारी स्थितिका विचार करते हुए दो-चार बातें और कह देना भी आवश्यक मालूम पड़ता है। शान्ति और व्यवस्था कायम हो चुकनेके बाद शान्त वातावरणमें उन लोगोंके व्यवहारका उचित मूल्यांकन करना अत्यन्त कठिन है जो गम्भीर संकट कालका मुकाबला करते समय तदनुसार तुरन्त निर्णय करनेके लिए बाध्य थे। साहस और पहल करनेके गुण उपद्रवकी प्रारम्भिक अवस्थामें अत्यन्त अमूल्य होते हैं; किन्तु बादकी अवस्थामें यदि उनका विवेकके साथ उपयोग न किया जाये तो वे हानिकर भी हो सकते हैं। ऐसे अवसरोंपर इस बातका निर्णय करना कि कब कोई कदम उठाया जाये और कब न उठाया जाये बहुत कठिन होता है। अतः सही मूल्यांकनके लिए इस कठिनाईका खयाल रखना और सारी परिस्थितिपर सही दृष्टिकोणसे विचार करनेका प्रयत्न जरूरी है।

सौभाग्यकी बात थी कि जब अप्रैल १९१९ में उपद्रव शुरू हुए, पंजाब एक बहुत अनुभवी और साहसी लेफ्टिनेंट गवर्नरके शासन में था। भारत सरकारका विचार है कि सर माइकेल ओ'डायरने महान् संकटकालमें दृढता और साहससे काम लिया