पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 17.pdf/६४

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३६
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

गया था। मलकवालके लोगोंको इतना अधिक दबा दिया गया है कि नेताओंमें हमें निमन्त्रित करनेकी हिम्मत न थी। लेकिन जनता और नेताओंके बीच इस समय पूरा मेल नहीं है। इसलिए जब लोगोंको खबर मिली तब वे इतनी ज्यादा संख्यामें आये कि सारा स्टेशन ही भर गया और आसपासके गाँवोंसे इतने लोग आये कि शान्ति रखना मुश्किल हो गया। लेकिन नेता लोग तो डरके मारे दूर ही रहे। मलकवालमें रातको रहना था। सबेरे आसपासके गाँवोंके स्त्री-पुरुषोंने बाजे बजाते हुए आकर हम सबको जगा दिया और लोगोंकी भीड़ इतनी ज्यादा हो गई कि शान्तिसे बैठकर बातचीत करना अथवा [घटनाओंकी] जानकारी लेना असम्भव हो गया। अन्तमें में लोगोंको निकटके मैदानमें ले गया और वहाँ सभा की; तभी कुछ शान्ति मिल सकी। इस तरहकी सब सभाओंमें यद्यपि हजारों व्यक्ति होते हैं तथापि अध्यक्ष और भाषण करनेवाला व्यक्ति सिर्फ में ही होता हूँ, अथवा ऐसा कहूँ कि कोई भी अध्यक्ष नहीं होता। दिन प्रतिदिन इन सभाओंमें स्त्रियोंकी उपस्थितिमें वृद्धि होती दिखाई देती है। मलकवालसे ११ बजे हम लालामूसा के लिए रवाना हुए।

मार्गके दृश्य

यह मुख्य लाइनपर जंकशन स्टेशन है और मलकवालसे ढाई घंटेका रास्ता है। बीचमें चार-पाँच स्टेशन आते हैं। इन स्टेशनोंके दृश्योंका वर्णन करना असम्भव है। लगभग प्रत्येक स्टेशनपर ट्रेन कुछ ही मिनटोंके लिए रुकती थी फिर भी सैकड़ों व्यक्ति--पुरुष और स्त्रियाँ--इकट्ठे हो जाते थे। बीचमें बाहुद्दीन नामक एक स्टेशन है। यह गाँव अपेक्षाकृत बड़ा कहा जा सकता है। स्टेशनके आसपास जहाँतक मेरी नजर जाती थी वहाँतक स्त्री-पुरुष नजर आते थे और स्त्रियाँ मुझसे मिलनेके लिए पुरुषोंके संग होड़ कर रही थीं। प्रत्येक स्थानपर स्त्रियोंके अपने हाथके कते सूतका प्रसाद मुझे मिलता था। लेकिन धींगा नामका एक स्टेशन जहाँ ट्रेन पाँच-सात मिनट रुकी होगी, वहाँका दृश्य तो मुझे अद्भुत लगा। स्त्रियाँ पुरुषों के पीछे खड़ी थीं; वहाँसे वे एकके बाद एक सूतके गोले अथवा गुच्छियाँ फेंकती जाती थीं और ट्रेनमें बैठे हुए हम लोग तथा बीचमें खड़े व्यक्ति उनको लपक लेते थे। स्त्रियोंकी भावनाओंको में समझ सका था और मेरा हृदय हर्षसे भर उठा था। इतनी सारी स्त्रियाँ मेरे प्रति अद्भुत प्रेम किस कारण व्यक्त करती हैं इस प्रश्नका उत्तर मुझे धींगा स्टेशनके इस चमत्कारसे मिला। मेरी दृढ़ मान्यता है कि पंजाबकी स्त्रियाँ मेरे सन्देशको समझ गई हैं। उन्हें इस बातका आभास हो गया है कि स्वदेशीमें सिर्फ हिन्दुस्तानका पैसा बचानेकी ही बात नहीं है, उसमें स्त्रियोंके शीलकी रक्षा है, ईश्वर-भक्ति है और उसमें हिन्दुस्तानकी मुक्ति है। और फिर स्त्रियाँ सत्याग्रहके निर्दोष सन्देशको अनायास ही अपनी प्रेरणाशक्तिसे बिना समझाये ही समझ गई है और इससे उन्हें भारी शान्ति और आश्वासन मिला है। वे यह मानती हैं कि यदि मेरे सन्देशपर हिन्दुस्तान अमल करे तो हिन्दुस्तानमें और हिन्दुस्तानकी मार्फत जगत्में शान्तिका प्रसार हो तथा सत्ययुगका प्रवेश हो। यह सब इस युगमें हो अथवा न हो, तो भी ये दोनों वस्तुएँ श्रद्धापूर्वक प्रयत्न करने जैसी हैं, यह बात स्त्रियाँ समझ गईं हैं और इसी कारण वे निर्भयतापूर्वक