३९. अल्पमतने फौजी कानूनी प्रशासनकी अधिक कठोर आलोचना की है। पहले जिन आलोचनाओं पर विचार किया जा चुका है, उनके अलावा उसका [अल्पमत] विचार है कि बहुतसे हुक्म केवल दण्ड देनेके उद्देश्यसे जारी किये गये थे। विशेषरूपसे वे उन आदेशोंका हवाला देते हैं जो लाहौरके प्रत्येक हलकेके प्रतिनिधियोंको यह निर्देश देते थे कि वे कमांडिंग अफसरके उस दिनके लिए दिये गये आदेशोंके बारेमें निश्चित रूप से जानने के लिए रोजाना उसके सामने उपस्थित हों। कर्फ्यू आर्डर, मूल्योंका नियंत्रण और भारतीयों से मोटरें, बिजली की रोशनी और पंखोंको छीन लेनेकी भी आलोचना की गई है। हम यह कहनेको तैयार नहीं हैं कि ये सब आदेश अनुचित थे, परन्तु हम मानते हैं कि लाहौर में फौजी कानूनका प्रशासन कुछ मामलोंमें जरूरत से ज्यादा सख्त था और उसने अपनी वाजिब सीमाओंका अर्थात् फौजी स्थिति और कानून तथा व्यवस्था कायम रखनेकी अपेक्षाओंका अतिक्रमण किया था। अल्पमत उस आदेशकी भी निन्दा करता है जो मकान मालिकोंपर यह जिम्मेवारी डालता है कि वे फौजी कानूनके उन नोटिसोंकी रक्षा करें जो उनके मकानोंपर चिपकाये गये हैं। भारत सरकार उन परिस्थितियों में दिये गये इस आदेशको अनुचित कहनेको तैयार नहीं है। अल्पमत इस बातको बहुत ही बुरा बताता है कि फौजी कानूनके कुछ नोटिस फाड़ दिये जानेके कारण सनातन धर्म कालेजके प्राध्यापकों तथा छात्रोंको बन्दी बनाया गया। भारत सरकार मानती है कि यह आदेश उक्त मामलेके सम्बन्धमें जरूरत से ज्यादा कड़ा था। इसके बाद अल्पमत कुछ अधिकारियोंके आचरणकी आलोचना तथा भर्त्सना करता है, खास तौर पर फौजी कानूनके प्रशासन कालमें कर्नल ओब्रायन, श्री बॉसवर्थ स्मिथ और जैकबने जो अनेक आदेश जारी किये थे उसने उनके लिए इन तीनोंकी आलोचना की है। भारत सरकार मानती है कि इन अधिकारियोंने उक्त अवसरोंपर अवैध और कुछ मामलों में अनुचित कार्य किया। यद्यपि इन सब मुद्दोंपर अल्पमतकी रिपोर्टके निष्कर्ष अत्यन्त निश्चयात्मक और कुछ मामलोंमें पूरी तरह न्यायसंगत हैं फिर भी यह याद रखना चाहिए कि फौजी कानून प्रशासनके संचालक अधिकारियोंसे ऐसी अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वे असाधारण परिस्थितियोंमें भी उसी सावधानी और विवेकसे काम लें जिनसे साधारण परिस्थितियों में काम लेना सम्भव है। व्यवस्था स्थापित हो जानेपर शान्त वातावरण में इनके कार्योंकी बादको की जानेवाली जाँचके लिए इस प्रकारके मापदण्डका सख्ती से लागू किया जाना भी सम्भव नहीं है।
४०. अल्पमत फौजी कानूनके अन्तर्गत अदालतोंकी कार्य-प्रणालीपर एक अलग अध्याय में विचार करता है। उसका लाहौरमें एक अतिरिक्त सहायक आयुक्त द्वारा एक बारात के कुछ लोगोंपर कोड़े लगवानेकी निन्दा करना ठीक है। पंजाब सरकारने सत्ता के इस दुरुपयोगके लिए उत्तरदायी अधिकारीके खिलाफ तुरन्त कार्रवाई की। समरी अदालतोंकी प्रक्रियाको असन्तोषजनक कहकर उसपर चोट की गई है। भारत सरकार नहीं मानती कि जब फौजी कानून लागू किया गया हो, उस समय ऐसी अदालतोंसे उम्मीद की जाये कि वे प्रक्रियाकी वही औपचारिकताएँ निबाहें जो साधारणतः निवाही जाती हैं। बहुमतकी अपेक्षा अल्पमतकी रिपोर्ट बहुत संख्या में लोगोंकी