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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

साथ की जानेवाली शान्ति सन्धिपर अभी दस्तखस्त भी नहीं हुए थे तब निश्चित ही युद्धकी स्थिति केवल कहने भरकी बात नहीं थी। इस बीच अफगानोंके साथ एकाएक युद्ध छिड़ने से हुई एक नई परेशानीका उल्लेख हम पहले कर ही चुके हैं। इससे जो कठिनाइयाँ पैदा हुई उन्हें सीमान्त जातियोंके रुखने और भी बढ़ा दिया। किन्तु इन स्थानीय कठिनाइयोंके साथ और उनसे होनेवाली परेशानीको बढ़ानेवाली एक चीज़ और भी थी—यह थी इस परम आवश्यकताकी प्रतीति कि साम्राज्यकी पुकारपर महामहिमके भारतीय राज्यके साधन तुरन्त नियोजित कर सकनेकी हमारी तैयारी कायम रहनी चाहिए। क्योंकि साम्राज्यकी जरूरतें युद्ध-विरामसे कम अवश्य हो गई थीं, परन्तु समाप्त नहीं हुई थीं। इस जरूरत के रहते हुए किसी ऐसी नीतिपर विचार करना असम्भव था जिससे सामान्य स्थिति वापस लाने या इन उपद्रवोंके प्रकोपको पुनः दबानेमें देरीका काफी खतरा हो सकता था जो कि शान्त हो गये-से जान पड़ते थे।

हम यहाँपर यह और कह देना चाहते हैं कि हमारे माननीय सहयोगी श्री शफी हमारे द्वारा स्वीकृत समिति के बहुमतके इस निष्कर्षसे कि फौजी कानूनकी घोषणा जरूरी थी, भिन्न राय रखते हैं। उनकी राय में इन उपद्रवोंके पीछे ब्रिटिश शासनको पलटनेका पहले से नियोजित या सुचिन्तित कोई षड्यन्त्र नहीं था, सम्बद्ध पाँच जिलोंका विस्तृत ग्रामीण क्षेत्र शान्त और राजनिष्ठ बना रहा, उपद्रव केवल शहरी क्षेत्रोंमें कुछ जगहों में हुए और इन जगहों में भी वहाँके अधिकांश निवासियोंने उपद्रवोंमें कोई हिस्सा नहीं लिया, इसलिए जैसा कि आरोप लगाया गया है, खुला विद्रोह नहीं हुआ और ऐसी स्थिति में फौजी कानून घोषित करना न्यायसंगत नहीं था। इसके अलावा इन जिलोंमें जिस तारीखको फौजी कानून वस्तुतः लागू किया गया उससे पहले ही फौजी मदद से उपद्रव शान्त किये जा चुके थे और इसके परिणामस्वरूप इन दिनों तथा इनके बाद फौजी कानून लागू करने और जारी रखनेकी कोई जरूरत नहीं थी। मामला इस प्रकार होनेके कारण श्री शफीकी राय है कि इतने लम्बे समयतक फौजी कानूनका जारी रखना अनावश्यक था।

३७. अध्याय १२ में फोजी कानूनके प्रशासन, जिसमें समरी अदालतोंकी कार्य प्रणाली भी शामिल है, पर विचार किया गया है। समितिके बहुमतके विचारमें जो यह कहा गया है कि मुकदमे लम्बे, विस्तारसे और सावधानीके साथ किये गये हैं, सही है; और वह फौजी अदालतोंकी जगह भारत रक्षा अधिनियमके अन्तर्गत जिनकी व्यवस्था की गई है वैसी विशेष अदालतोंकी स्थापना करनेकी सराहना करता है। किन्तु उनकी राय है कि यद्यपि गिरफ्तारियाँ साधारण ढंगसे की गईं, फिर भी सम्भव है कि ऐसे मामले हुए हों जिनमें किसी पुलिस अधिकारीने गिरफ्तार किये गये व्यक्तियोंके साथ अनावश्यक सख्ती बरती हो। उसके विचारसे यद्यपि यह बात खेदपूर्ण है कि गिरफ्तार किये गये ऐसे लोगोंकी संख्या, जिनपर अभियोग नहीं चलाया गया, अधिक थी, और उनको नजरबन्द रखनेका समय असाधारण रूपसे लम्बा था, फिर भी कुल मिलाकर उनके साथ दुर्व्यवहार या उनपर अत्याचार नहीं किया गया। उपद्रव इतना अधिक विस्तृत और गम्भीर था कि तत्क्षण बनाई गई किसी भी प्रणालीपर उसका असर पड़ना