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परिशिष्ट


३६. फौजी कानून घोषित करनेकी जरूरतपर विचार करते समय भारत सरकारके लिए निष्पक्ष विचार करना कठिन था। यह जरूर है कि स्थानीय सरकार द्वारा भेजी गई जानकारीसे हमारा पथप्रदर्शन हुआ। हमें पहले ही कई स्थानोंसे गम्भीर उपद्रवोंकी सूचनाएँ मिल चुकी थीं; और हम इस रायपर कायम हैं कि १३ अप्रैलकी शामको जब हमें बेतारसे निम्नलिखित सूचना मिली तब उस सूचनाको सामने रखते हुए हमने उस समय जो वास्तविक मार्ग अपनाया उसके अतिरिक्त हम और कोई मार्ग नहीं अपना सकते थे। सूचना इस प्रकार थी : "कसूर और अमृतसर के बीचके रेलवे स्टेशन लूट लिये गये हैं। कसूरमें एक ब्रिटिश-सिपाही मार डाला गया है और दो ब्रिटिश अधिकारी घायल कर दिये गये हैं। सूचना है कि विद्रोहियोंके दल आगे बढ़ रहे हैं—कसूर और तरनतारन के खजानोंपर हमला किया गया है। लाहौर और अमृतसर जिलोंके कुछ भागों में खुले विद्रोहकी स्थिति है। लेफ्टिनेंट गवर्नर १६वीं डिवीजनके जनरल कमांडिंग अफसर और उच्च न्यायालयके मुख्य न्यायाधीशकी सलाहसे सपरिषद् गवर्नर जनरलसे प्रार्थना करते हैं कि अमृतसर और लाहौर जिलोंमें साधारण फौजदारी अदालतोंको बन्द कर दिया जाये ताकि वहाँ फौजी कानून लागू हो सके और १८०४के खण्ड २२के विनियम १०के अधीन अपराधियोंपर मुकदमे चलानेका निर्देश दिया जाये। यहाँपर खंड ४को भी ध्यान में रखना होगा। स्थिति नाजुक है। फिरोजपुर से भेजा जानेवाला सैनिक दस्ता कल तोपोंके साथ सबसे खतरनाक रास्ते से अमृतसर के लिए कूच आरम्भ करेगा।"

भारत सरकारकी कार्रवाई अब समितिके बहुमतके निष्कर्षोंसे उचित साबित हो चुकी है। बहुमत स्थानीय सरकारको भी सारे दोषोंसे मुक्त करता है। अल्पमत उपद्रवोंकी संख्या, दंगोंमें व्यस्त लोगोंकी कटुता, प्रयुक्त हिंसा और कितनी बार गोली चलाने की जरूरत पड़ी उससे सम्बन्धित तथ्योंके निष्कर्षोंको स्वीकार करता है। वह यह भी कहता है कि जिन लोगोंने उपद्रवोंमें हिस्सा लिया उनमें से कुछके काम कानूनकी निगाह में सम्राट्के खिलाफ युद्ध छेड़ने के माने जा सकते हैं यद्यपि यह बगावतके उस अर्थ में ठीक नहीं है जिसमें साधारणतया उसका उपयोग किया जाता है। भारत सरकारकी राय में इन निष्कर्षोंसे उसके इस फैसलेका जोर कि फौजी कानून लागू करना जरूरी नहीं था, काफी कम हो जाता है। फौजी कानून जारी करनेके सम्बन्धमें भारत सरकारकी बहुमतके निष्कर्षोंके अतिरिक्त और कुछ नहीं कहना है। उसे केवल इतना और कहना है कि यद्यपि अफगान युद्धके प्रारम्भ होनेके कारण फौजी कानूनको रेलवेपर काफी अर्से तक कायम रखा गया, फिर भी जिलोंसे उसे हटा लेनेके बाद उसे वहाँ लागू करनेका कारण यह था कि यातायातपर नियन्त्रण रहे और रेलकी पटरियोंकी रक्षा हो। इसके अलावा अप्रैल १९१९ में जिस प्रकारकी स्थिति थी उसमें एक बात ऐसी थी जिसकी उपेक्षा भारत सरकारकी राय में सही निर्णयको क्षति पहुँचाये बिना नहीं की जा सकती। उस समय ब्रिटिश साम्राज्य जर्मनीके साथ युद्धमें संलग्न था। यहाँतक कि अभीतक हम सब दुश्मनोंसे सुलहकी दशा में नहीं हैं; और एक साल पहले जब जर्मनीके