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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

परन्तु जैसा कि बादमें फौजी कानून आयोग के सामने ली गई गवाहियोंसे जाहिर होता है, उन्होंने उस तारीखके बाद गुप्त सभाएँ कीं और फौजदारी षड्यन्त्रके ढंगका आन्दोलन चलाना जारी रखा। इन्हीं परिस्थितियों में स्थानीय सरकारने उन्हें अमृतसरसे धर्मशाला हटा देने का फैसला किया। यह बात सचमुच सही है कि जैसे ही निर्वासनका समाचार मिला, विस्फोट शुरू हो गये। परन्तु जब व्यापक रूपसे अत्यधिक उत्तेजना फैली हो उस समय यह निर्णय करना हमेशा ही कठिन होता है कि इस प्रकारके उठाये गये निवारक कदम आम वातावरणको शान्त करेंगे या उपद्रवोंको और भी प्रोत्साहित करेंगे। सम्भावना ऐसी ही थी कि उनसे पहला परिणाम उपलब्ध होगा।

३५. रिपोर्टके दसवें अध्यायमें उन तथ्योंका विवरण है जो कि फौजी कानूनको लागू करने की क्रमिक अवस्थाओंसे सम्बन्ध रखते हैं। ग्यारहवें अध्यायमें फौजी कानून लागू करने और जारी रखनेके औचित्यपर चर्चा की गई है। जैसा कि पहले ही कहा जा चुका है, समितिका बहुमत निश्चित रूपसे यह मानता है कि सरकारके विरुद्ध बगावतकी स्थिति मौजूद थी। वह विभिन्न घटनाओंपर विचार करता है; उपद्रवोंके विस्तृत स्वरूप, इक्का-दुक्का घटनाओंकी आलोचना करनेके खतरों तथा उनके महत्त्वकी ओर इंगित करते हुए उस समूची स्थितिकी जाँच करता है जो उस समय पंजाब सरकार और भारत सरकारके सामने थी। अन्तमें वह कहता है कि पंजाबमें स्थिति अत्यन्त गम्भीर थी और जिन क्षेत्रों में गम्भीर स्थिति बताई गई थी वहाँ फौजी कानून घोषित करके अधिकारियोंने उचित ही किया।

फौजी कानून जारी रखनेकी बुद्धिमत्तापर थोड़ी बहुत चर्चा की गई है और अफगान युद्धके विशेष सन्दर्भ में रेलवेपर उसे देरतक जारी रखनेकी जाँच की गई है। बहुमतका निष्कर्ष है कि फौजी कानून जारी रखनेके लिए जो जिम्मेदार थे उन्होंने उस प्रश्नपर सावधानीसे भली-भांति सोच-विचार करनेके बाद निर्णय किया था और उसके अनुसार प्रान्त में व्यवस्था पुनः स्थापित करने और कायम रखने के लिए जितने समयतक उसकी आवश्यकता थी उससे अधिक समयतक उसे जारी नहीं रखा। सरकारके सामने जो जटिल समस्या थी, उसे देखते हुए समिति यह उचित नहीं समझती कि उस निर्णयकी विपरीत आलोचना की जाये। फौजी कानून लागू करने और जारी रखनेके प्रश्नपर अल्पमतका बहुमत से बहुत अधिक मतभेद है। उसका विचार है कि फौजी कानून लागू करना जरूरी नहीं था, क्योंकि उसकी रायमें हर जगह व्यवस्था कायम कर दी गई थी और फौजी कानून लागू करनेसे पहले सरकारकी सत्ता पुनः प्रतिष्ठित हो चुकी थी। उसका विचार है कि असैनिक सत्ता द्वारा सेनाकी सहायता से व्यवस्था पुनः कायम की जा सकती थी, किन्तु पंजाब सरकारने बिना विचारे स्वयं यह तय कर लिया कि फौजी कानून जरूरी है। अल्पमतने फौजी कानून जारी रखनेके तर्कोंकी भी जाँच की और उन्हें अस्वीकार कर दिया है। उसका कहना है कि मान लिया जाये, फौजी कानून लागू करना जरूरी था, फिर भी उसे कुछ ही दिन जारी रखना चाहिए था। उसका विचार है कि पंजाब सरकारने गलत ढंगसे प्रश्नको हाथमें लिया और भारत सरकारका मार्गदर्शन स्थानीय सरकारने ही किया।